शायद हम से भूल हुई है

शायद हम से भूल हुई है


शायद हम से भूल हुई है..

प्यारे हताश

धरती-धरती एक धरा है

अम्बर-अम्बर एक गगन,

बोलो कैसे बांट सको तुम

किससे नाता तोड़ोगे।

मानवता अधिकार जो मांगे

प्यार परोसो पल-पल का,

वंचित कैसे रख पाएंगे

मन को मन से जोड़ेंगे।

अधरों से मुस्कान जो जाए

नयन भिगोकर कह देंगे,

यह इतिहास नहीं हमारा

इससे हम मुंह मोड़ेंगे।

मेरी मुझसे परिभाषा क्या

पूछ रहे हो ऐ यारो,

हम तो 'मैं' में सिमट चुका है

'मैं' को कब हम छोड़ेंगे।

ध्वज फहराए शांति के हम

कब से सहते आए हैं,

फिर क्यों अपने घर में रहकर

घर को जलाने दौड़ेंगे।

गागर भरने निकली थी वह

सागर खून का जो देखा,

अपना बेटा ओंध पड़ा था

मुख पर अब चादर ओढ़ेंगे।

तिनका-तिनका एक जगत जो

जीवन भर में पाया था,

छिटक गया वह भी आंखों से

किससे बन्धन जोड़ेंगे।

शायद हम से भूल हुई है

जन्म यहां पर जो पाया,

आज भी कितने लाल हैं बाकी

कल तक जो दम तोड़ेंगे।

 

अस्वीकरण :

उपरोक्त लेख में व्यक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं और kashmiribhatta.in उपरोक्त लेख में व्यक्त विचारों के लिए किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। लेख इसके संबंधित स्वामी या स्वामियों का है और यह साइट इस पर किसी अधिकार का दावा नहीं करती है। कॉपीराइट अधिनियम 1976 की धारा 107 के तहत कॉपीराइट अस्वीकरण, आलोचना, टिप्पणी, समाचार रिपोर्टिंग, शिक्षण, छात्रवृत्ति, शिक्षा और अनुसंधान जैसे उद्देश्यों के लिए "उचित उपयोग" किया जा सकता है। उचित उपयोग कॉपीराइट क़ानून द्वारा अनुमत उपयोग है जो अन्यथा उल्लंघनकारी हो सकता है।"

साभार:     प्यारे हताश एवं 10 अप्रैल 1994 पाञ्चजन्य