शायद हम से भूल हुई है..
प्यारे हताश
धरती-धरती एक धरा है
अम्बर-अम्बर एक गगन,
बोलो कैसे बांट सको तुम
किससे नाता तोड़ोगे।
मानवता अधिकार जो मांगे
प्यार परोसो पल-पल का,
वंचित कैसे रख पाएंगे
मन को मन से जोड़ेंगे।
अधरों से मुस्कान जो जाए
नयन भिगोकर कह देंगे,
यह इतिहास नहीं हमारा
इससे हम मुंह मोड़ेंगे।
मेरी मुझसे परिभाषा क्या
पूछ रहे हो ऐ यारो,
हम तो 'मैं' में सिमट चुका है
'मैं' को कब हम छोड़ेंगे।
ध्वज फहराए शांति के हम
कब से सहते आए हैं,
फिर क्यों अपने घर में रहकर
घर को जलाने दौड़ेंगे।
गागर भरने निकली थी वह
सागर खून का जो देखा,
अपना बेटा ओंध पड़ा था
मुख पर अब चादर ओढ़ेंगे।
तिनका-तिनका एक जगत जो
जीवन भर में पाया था,
छिटक गया वह भी आंखों से
किससे बन्धन जोड़ेंगे।
शायद हम से भूल हुई है
जन्म यहां पर जो पाया,
आज भी कितने लाल हैं बाकी
कल तक जो दम तोड़ेंगे।
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साभार: प्यारे हताश एवं 10 अप्रैल 1994 पाञ्चजन्य