व्यथ मा छे शाॅगिथ -  मन हट मन रोटुम कच़े

व्यथ मा छे शाॅगिथ -  मन हट मन रोटुम कच़े


मन हट मन रोटुम कच़े

तारचि़ तूलुम त रॅटिम कन।

दब दब वाॅलिथ श्रोपरिम मेचे़

वनन कुनिरिथ बन्यन स्वन।।

अॅदर्य अॅदर्य अंदर गराह

गरस अंदर समंदराह ।

नल वटि रोस्तुय द्वसि बराह

जाफर्य मवहरि स्वन हार्य थराह।।

वन लोग मेलाह ख्यन रोस पानस

मानसबलस गाॅडुख ज़ूल।

ताह ताह रंग रंग आयस्तानस

लंजि ब्वन थानस ह्योर कुन मूल।।

ज़िद पान आयस मरन मरन

ग्वरन पेयस ख्वरन तल।

हरन कोसुम द्वदुर लरन

ज़र्यर ज़रन कौंसर बल ।।

किथ शाह गोमुत नाॅल्य अरजो़लुय

कवो छुख लोगमुत वाल वाशे।

ज्य़त मर स्वख द्वख ज़न अरखोलुय

वेह व्याज़ रिवान ज्यन बाशे।।

पान्य पानय कुस छुख ब्याख

पानय खाक पानय कुज।

पानय जा़ख पानय प्याख

पानय श्राख पानय पुज।।

दीशन दीशन दितिम वॅनी

मे जा़हं न कुनी अथि अद आम ।

मनस दितिम पवनन्य पॅमी

अद अंद कनी तीर्थ द्राम ।।

सत् यवग कलि यवग प्रथ यवग बनी

दियि मनस युस युथ दाय ।

लछि बॅद्य यवग अद कति ननी

च्वशवय गुनी हर ख्वग जा़य।।

शंकर जटे चॅ़द्रम रटे

शिव शहस कस प्युल द्यान।

वन छा खसिहे छटि छ़टे

हू हा न तस मिलविथ प्रान।

लयि गछुन त नयि म्वचुन

त्रेयि नचुन अंदर द्यान।

फहि गछुन कहि प्रचु़न

सुय वच़ुन आत्म जा़न।।

 

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साभार:  बिमला रैना बिम  एवं  Aalav, November 2007