बहुत दिनों से मैंने कोई..
गीत नया नहीं गाया
बहुत दिनों से मन को कोई,
रंग नहीं है भाया
बहुत दिनों से घर में कोई,
मीत नहीं है आया
बहुत दिनों से आसपास में,
सन्नाटा है छाया
बहुत दिनों से दिल की धड़कन,
है घर के ही अंदर
बहुत दिनों से वेगयुक्त है,
भीतर का समुंदर
बहुत दिनों से सड़कें सूनी,
पशु बाहर बिलखते
बहुत दिनों से दाना पानी,
के लिए तरसते
बहुत दिनों से वन का साया,
छाया नगर नगर में
बहुत दिनों से कोयल की,
कू कू डगर डगर में
बहुत दिनों से मानव अब,
सीख रहा है जीना
बहुत दिनों के बाद पड़ेगा
कष्टों को अब पीना
बहुत दिनों से तन्हा बैठे,
ईश्वर और घड़ियाले
बहुत दिनों से खोज रहा हूं,
कहां गए रखवाले
बहुत दिनों से मेरे भीतर,
अनहद है तन मन से
बहुत दिनों के बाद मिला हूं,
अपने ही जीवन से ।।
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साभार: महाराजकृष्ण भरत एवं जून 2021 कॉशुर समाचार