नवरेह के आंगन पर

नवरेह के आंगन पर


रात भर मां

सोचती रही

उस भरी थाली के बारे में

जो रखा करती थी

सोंत आने पर

सिरहाने

ढेर सारी कोंपलों के साथ,

कि उसके पूर्वज

बता गए थे उसे

नवरेह की पहली प्रभात में

भरी थाली का मुंह देख

होता है शुभ

नववर्ष में प्रवेश करना।

आज

टेंट का दामन थामें

ले आई थी मां

काटकर कुछ झाड़ियां

दरख्तों के पत्ते!

कुछ अपनी बेबसी!

इस निर्वासन में भी

मां ने

दिलाया मुझे अहसास

घर में होने का।

सोंत-वसंत

नवरेह-वर्ष प्रतिपदा

 

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साभार:- महाराज कृष्ण  भरत एवं 10 अप्रैल 1994 पाञ्चजन्य