विदा

विदा


उसे कह तो पाता कि

जा रहा हूँ

कैसे कह पाता ?

हवा ही बेरुखी थी

उठा कर पटक दिया मुझे

सैंकडों पवर्त दूर

यहां इन खुले आसमानों तले

मैं कितनी कोशिश में जुता हूँ

इन पेड़ों पौधों से बात करने में

कोई मेरी भाषा क्या

भंगिमा तक पहचानता नहीं

गूंगा हो गया हूँ मैं

इन चालाक देवदूतों के बीच

जो मुझे जानते तो हैं पर

पहचानने से इनकार करते हैं

भला इतना बड़ा चिनार

मैं पीठ पर लाद कर लाता कैसे?

लाता भी तो क्या

यहा रख पाता?

कहते हैं कि इन्हें

केवल चिनारों का दर्द सताता है।

और जो बेवजह उजाड़ दिए गये

वो होते ही उजड़ने के लिए तो हैं

मेरे घर का नीलाम होना

लुटना जलना या हडपा जाना

कोई वारदात नहीं

एक हादसा भी नहीं

ना ही कोई गुनाह

उन सब का दर्द बहुत बड़ा है।

जिन्होंने मेरा घर छीनने का

काम किया है।

उस दर्द की दवा हो

इस के लिए दुआ में सब

पत्थर उठाये

उनको मार रहें हैं

जो उनके दर्द की दवा करते।

बहुत हकीम हैं हाहिम भी हैं ये

इन को किसी की आवश्यक्ता नहीं

बस इन को आजाद छोड़ दो

इनकी मनमानी करने को

ये जिनको हूरों और मदिरा

की जन्नत के बहकावे में

झोंक दिया जाता जिन्दा ही

आग के दहशतखानों में है।

 

अस्वीकरण :

उपरोक्त लेख में व्यक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं और kashmiribhatta.in उपरोक्त लेख में व्यक्त विचारों के लिए किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। लेख इसके संबंधित स्वामी या स्वामियों का है और यह साइट इस पर किसी अधिकार का दावा नहीं करती है। कॉपीराइट अधिनियम 1976 की धारा 107 के तहत कॉपीराइट अस्वीकरण, आलोचना, टिप्पणी, समाचार रिपोर्टिंग, शिक्षण, छात्रवृत्ति, शिक्षा और अनुसंधान जैसे उद्देश्यों के लिए "उचित उपयोग" के लिए भत्ता दिया जाता है। उचित उपयोग कॉपीराइट क़ानून द्वारा अनुमत उपयोग है जो अन्यथा उल्लंघनकारी हो सकता है।"

साभार: महाराज शाह एवं जून 2021 कॉशुर समाचार