स्वप्न
मोहिनी वातल
दिवाकर जब अश्व-रथ लेकर लौटा
परती को अंधकारमय कर गया वह
निराश व्यक्ति को कुछ सहारा मिला
अंधकार के गर्त में उसने वेदना को डुबो दिया
पीड़ा से व्यथित मानव कुछ राहत पा गया
अंधकार का इस प्रकार स्वागत किया गया
आंखों की सेज पर उसने सपनों को सुला दिया
मानव अब नई दुनिया में पहुंच गया
वेदना से कराहता मानव कुछ सुख-चैन पा गया
अरमान जो पूरे न हुए थे दिन के प्रकाश में
अंधकार में वे अब पूरे हुए एकाएक ।
दिल भर न पाया था अभी पूर्ण रूप से
सूर्य-रथ ने लौटकर सारे सपने कुचल दिए
मानव फिर से दर्द और पीड़ा से कराह उठा
सुख जो क्षण भर का था भागा वह छोड़कर
फिर से वही कसक, विवशता और वेदना
स्वप्न जगत भी क्या अनूठा है विधाता।।
अस्वीकरण:
उपरोक्त लेख में व्यक्त विचार अभिजीत चक्रवर्ती के व्यक्तिगत विचार हैं और कश्मीरीभट्टा .इन उपरोक्त लेख में व्यक्तविचारों के लिए जिम्मेदार नहीं है।
साभार:- मोहिनी वातल एंव मार्च 2019, कॉशुर समाचार