कविता - वह भी कूच कर गया

कविता - वह भी कूच कर गया


कविता - वह भी कूच कर गया

बदरीनाथ भट्ट   

आगन में पड़ा था एक अकेला,

सब भागे थे शून्य था मेला।

आवाजें भयावह भयानक नारे.

काप उठे थे 'नाग' बेचारे ।

छाए. घने आतंक के साए,

असहाय पड़े थे सारे-सारे।

डूबा था यादों में एक-अकेला,

इक-टक देखे, घर को निहारता।

पूर्वजों की यह थी थाती,

इसकी यादें, उसके साथी।

मां और बच्चे कूच किए थे,

यह यादों को सजोए थे।

साझ ढली, पड़ोसी आया,

कांगड़ी वह भर के ले आया।

आगन में देखा, घर में निहारा,

पेड़ों के नीचे उसको पुकारा।

जाके देखा, खोया-सा था,

झझोड़ा उसको, वह सोया था।।

अस्वीकरण:

उपरोक्त लेख में व्यक्त विचार अभिजीत चक्रवर्ती के व्यक्तिगत विचार हैं और कश्मीरीभट्टा .इन उपरोक्त लेख में व्यक्तविचारों के लिए जिम्मेदार नहीं है।

साभार:-  बदरीनाथ भट्ट  एंव  2019   मार्च  कॉशुर समाचार