शिक्षा - रिश्तों का आंकड़ा

शिक्षा - रिश्तों का आंकड़ा


शिक्षा - रिश्तों का आंकड़ा

महाराज कृष्ण भरत

 

रिश्तों को सींचना वैसे ही फलदायक होता है जैसे हम बीज रौंपकर किसी भी पौधे वृक्ष या फिर खेत में फसलों को सींचते हैं क्योंकि सींचने से ही प्रकृति में हरियाली आती है और प्रेम की फुहारों से रिश्तों को सींचने से उमंग बढ़ती है मिठास अपनत्य की कसक जाग जाती है। अगर हम रिश्तों को नहीं सींचेंगे तो वह वैसे ही शिथिल पड़ जाएगे जैसे कोई पेड़ मुर्झा जाता है बिखर जाता है।

रिश्तों में यह शिथिलता अनबन अलगाव और दूरियों में प्रदर्शित होती हैं। हमारे बीच एक पारदर्शी दीवार खड़ी हो जाती है जिसको पार पाना दुष्कर हो जाता है और मनमुटाव, अहंकार से ग्रस्त होकर एक दूसरे के प्रति पूर्वाग्रहों का होना रिश्तों में एक खाई को उत्पन्न कर देता है और उस खाई को पाटना जीवन भर का संघर्ष बन जाता है।

वैर भाव जग जाने के कारण इस मृत्युलोक में रहकर भी हम फिर एक दूसरे की ओर नजर से नजर मिला कर देख ही नहीं पाते हैं। दिलों की दूरियों को पाटना तो दूर की बात है हम तो एक दूसरे के सामने प्रबल शत्रु होकर खड़े हो जाते हैं मिल पाता। और एक दूसरे का दुष्प्रचार करना प्रारंभ कर देते हैं। ईश्वर ने हमें जो आपस में मिल बैठकर जीवन बिताने की उम्र निर्धारित की है उस समय हम एक दूसरे की जड़ें खोदने में बिता कर रूठे हुए अपनों से मिले बिना ही इस संसार से विदा हो जाते हैं।

कहते हैं रिश्तों का एक आकार तो होता है जिसमें कई नाम कई सज्ञाए कहीं विशेषण जुड़े। होते हैं। यह सागर की तरह गहरे किसी वृक्ष की घनी छाया की तरह शीतलता प्रदान करने वाले उदास क्षणों में सात्वना देकर जीवन जीने का राग सुनाने वाले एक आनंददायी संगीत की तरह होते। हैं। रिश्ते या संबंध किसी भी भीतरी घाव के उपचार के लिए जीवनदायिनी संजीवनी बूटी की तरह होते हैं। इस मृत्युलोक के भय से जीवन जीने की उमग जगाते हैं हमें सहलाते हैं पुचकारते हैं मार्ग प्रदर्शित करते हैं, विपरीत परिस्थितियों में भी हमारे साथ खड़े हो जाते हैं सुख-दुख के भागी बन जाते हैं।

रिश्ते ही जीने का आधार होते हैं और हम अपनी अपनी दुनिया के संघर्षों-झंझावातों, उलझनों और कर्म में व्यस्त हो जाने के कारण बहुधा अपने समीप या फिर अर्जित रिश्तों को भी पुकार नहीं पाते उनके साथ दो क्षण बैठने का भी सौभाग्य नहीं

संसार के इस व्यूह चक्र में अपने रिश्तों से हम दूर होते जा रहे हैं। यह दूरिया दिलों की न रहे. इन्हें तो पाटना ही होगा क्योंकि रिश्तों की नींव आस्था विश्वास, प्रेम और अपनत्व के खभों पर टिकी रहती है।

अस्वीकरण :

उपरोक्त लेख में व्यक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं और kashmiribhatta.in उपरोक्त लेख में व्यक्त विचारों के लिए किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। लेख इसके संबंधित स्वामी या स्वामियों का है और यह साइट इस पर किसी अधिकार का दावा नहीं करती है।कॉपीराइट अधिनियम 1976 की धारा 107 के तहत कॉपीराइट अस्वीकरणए आलोचनाए टिप्पणीए समाचार रिपोर्टिंग, शिक्षण, छात्रवृत्ति, शिक्षा और अनुसंधान जैसे उद्देश्यों के लिए "उचित उपयोग" किया जा सकता है। उचित उपयोग कॉपीराइट क़ानून द्वारा अनुमत उपयोग है जो अन्यथा उल्लंघनकारी हो सकता है।

साभार:- महाराज कृष्ण भरत एंव जून 2023 कॉशुर समाचार