वबा
डॉ क्षमा कौल
हसनपीर के घर का अगल हिस्सा ओझाई की दुकान है। लोग पूरी दहलीज़ में अटे पड़े हैं। हसनपीर जिस कमरे में लोगों का काम करता है वह बेहद छोटा है। अल्मारियों से लदा-फदा। अलमारियों में हमदर्द की शीशिया रखी हैं ज्यादातर बच्चों की ग्राइपवाटर की शीशिया।
भीतर की चौड़ी गली से दिख रही है लोगों से भरी पड़ी हसनपीर की दहलीज आज भीड़ कुछ ज्यादा है। जुम्मा है। मस्जिद से प्रखर स्वर आ रहे हैं। अल्लाहो अकबर इन्हीं स्वरों को सुनते उसने जन्म लिया है। इन स्वर-शब्दों की आत्मीयता में पली है वह। पर आज इन स्वरों में से प्राणों की तरह आत्मीयता निकल गई है। बाल गार्डन वाली मस्जिद का मुल्ला संगीतमय ढंग से गाता था अर्से से वह स्वर सुनाई नहीं देता लंबे-लंबे आलापों से भरा ।
वाजखानी शुरू हुई। पैरों तले की मिट्टी खिसकाने वाली। आजकल सब कुछ ऐसा ही है। सहयोगियों की बातें। दीवारों के मंसूबे पड़ोसियों की बातें मस्जिदों के वाज। तो दबे कुचले एक दिन बेदार होंगे। वही दिन है आज। ऐ मुसलमीन उठ यह गुलामी की जजीर तोड़ फेंक तोड़ वे हाथ जिसने तुम्हें ये पहना दिए।"
उसने मस्जिद को ऊपर से नीचे तक एक नजर देखा। मस्जिद की इमारत हाल ही में बनी थी। एक तरफ तो लकड़ी का काम चल ही रहा है। आजकल मस्जिदें धडाधड बन रही है। उसके मुहल्ले में भी बनी। बहुत बड़ी। लगभग अढाई गज़ अहाते में आनन-फानन काम शुरू हुआ। रात-रात भर बड़े-बड़े लैम्पों की रोशनी में काम होता रहा मुहल्ले के युवकों ने देख-रेख का काम जोशोखरोश से आपस में बाँट लिया। महीने में मस्जिद फिट । माइक आदि सब कुछ फिट? माइक आदि सब कुछ समेत यो मुहल्ले में पहले से ही दो मस्जिदें है।
इस तरह की बातें विमला भी कह रही थी. कि उनके मुहल्ले में भी उन्हीं दिनों कई नई मस्जिदें बनीं। देखते-देखते। पता भी न चला। मेजॉरिटी है. कुछ भी कर सकते हैं उसने कहा था। उसने क्या वे सब इसी एकसूत्री रहस्य में जीते हैं। मस्जिदें बने सो ठीक है पर इस तरह की 1 वाजखानी। यह वाजखानी है? यह तो विद्रोह है हिंसक विद्रोह बगावत हिंसा करने का निमंत्रण अल्पसंख्यकों के प्रति हिंसा करने का प्रोत्साहन और मजहबी लोभ मस्जिदें या बगावत के अड्डे? उसका दिमाग किसी बिजली-मरा आसमान हो गया। सशय और भय के मेघों ने घटाटोप बना लिया। न जाने किस स्रोत से ये अबाध मेघ बनते ही चले गए।
दाईं तरफ से अंदर के लोग बाहर निकलते जा रहे हैं और बाईं तरफ से वह कतार में आगे बढ़ती ही जा रही है। उसके बाद चौथी अधेड स्त्री साड़ी पहने हुए है। उसका मन उससे बात करने का होता है पर उसे लगता है कि इस समय बात करना मामूली से मामूली बात करना भी खतरनाक है।
लोग शहर के हालात के बारे में बोल रहे हैं। कतार में उससे एक अंक आगे लंबा-चौड़ा पठान- सा एक अधेड़ व्यक्ति खड़ा है। बेटे को पुलिस हिरासत में ले गई है। हसनपीर के पास आया है। यह कथा वह अपने पीछे यानी उसके और उसके बीच खड़े अपने जैसे ही डीलडौल वाले असदुल्ला को कह रहा है। होंठ पपडियाये हैं. इस कदर परेशान ही है। होठों पर रह-रहकर जीभ फिरा रहा है। "हाईस्कूल का प्रिंसिपल पण्डित द्वारकानाथ जालसाज न एक निकला। जाली चिट्ठी बनवाई।
उसने घुए को फिर परेशान अंदाज में बाहर फेंका। रुका। उसकी बातों की शैली अब फुसफुसाहट के नज़दीक पहुंच गई डेढ़ साल साले को इस्लाम पर वार न दू. काफिर कहीं का पहले यह नाफलक पाकिस्तान गया था न बोला दसवीं के इम्तहान दूंगा अब्बा। फिर मौसी के पास जाऊगा मुज्जफराबाद। मैंने भी इजाजत दी। लौटा तो एक बंदूक के साथ बोला मीसा इफतकार ने तोहफे के तौर पर दी। हाईस्कूल का प्रिंसिपल पण्डित द्वारकानाथ जालसाज़ नं० एक निकला। जाली चिट्ठी बनवाई। साले को इस्लाम पर वार न दूं काफिर कहीं का
गदा। फिर जीभ फेरी होठों पर चिट्ठी पर इस्लाम का निशान। हिलाल । धमकी द्वारकानाथ एक हफ्ते के अंदर-अंदर शहर छोड़ दो वर्ना जुम्मा को सीने के आर-पार गोली होगी। कह दिया होगा कि उसे मुश्ताक पर शक है। आधी रात को पुलिस आई और पकड़कर ले गई। पण्डित द्वारिकानाथ का हौसला तो देखो। डरने के उलट मुझे मुसीबत में फसवाया। लड़का हिरासत से छूट जाए बस ।"
"अरे मैं नहीं जानता कि मेरा बेटा कैसा है। वल्लाह छूट जाए बस तब दिखाऊ इस द्वारकानाथ के बच्चे को ।"
उसे लगा जैसे वह उसे ही सुना रहा है हो न हो पण्डित द्वारकानाथ वही है।
असदुल्ला ने जेब से सिगरेट की डिबिया निकाली माचिस निकाली। एक सिगरेट इसे भी
थमाई, पीजिए याकूब साहब अल्लाह ठीक ही करेगा। पीर पर मेरा खासा यकीन है।
सिगरेट ली। उसकी आखों में नमी थी। भरी भरी नमी सिगरेट दो होंठों में रखने से पूर्व फिर 1 पपडियाये होंठों पर जीन फेरी तनाव से पूरा चेहरा बदरंग था।
सिगरेट का एक कश लेकर वह पता नहीं किस तसल्ली में लौटा में द्वारकानाथ की शक की तह में जा सकता हूँ। गलती मेरी ही है। वैसे पण्डित द्वारकानाथ है तो सूझ-बूझ वाला आदमी रास्ते में तलाशी बलाशी कुछ नहीं हुई ?" "खास नहीं। बहरहाल जब मैंने बंदूक देखी. जिनाब में पागल हो गया। तीन रात सो नहीं पाया। मुश्ताक कहता तोहफे में मिली चीज में नहीं दूगा।"
मैं इसे समझाता रहा बेटे! इतनी खतरनाक चीज को घर में नहीं रखना है। मैं जानता था मुश्ताक अव्वल दर्जे में पास होगा पण्डित से कहा ग्यारहवीं पढ़ानी शुरू कर दो। है वह काबिल मास्टर अव्वल दर्जे का। मुश्ताक खुद कहता है।
"पण्डित हैं न पण्डित सब ऐसे ही हैं। काबिलतरीन ।"
बिला शक बिला शक….|
हा तो मैंने सोचा मास्टर जी से अपनी परेशानी कह देनी चाहिए। मुश्ताक उन दिनों पढ़ता नहीं था। रूठा भी था। बहसबाज भी हो गया था। मुद्दा पाकिस्तान से आकर सचमुच बदल गया था। जेबा मास्टर जी को कहती अब्बा बीमार है मुश्ताक भाई पढ़ नहीं सकते और रूखसत करती। मैं भी बेवकूफ देखो मुझे लग रहा था कि मेरे पास बंदूक है-यह बात सारी दुनिया जानती है जैसे हर जगह इसी के चर्चे हैं। हर आंख मुझे ही देख रही है। सादगी की भी हद होती है। सोचा मास्टर जी को राजदार बनाऊ वह मेरी परेशानी का ईमानदारी से कोई न कोई हल देंगे। सोचा इसका निपटारा जल्दी करना चाहिए।
पीर साहब क्या कहते हैं?
कहते है छूटेगा पण्डितों की पीरगी करते-करते तो पीर साहब कहना नहीं चाहिए. खैर कहते हैं छोकरा मुलविस तो जरूर है किताब कह रही है कैसे कहूँ समझाऊँ में क्या अपने बेटे को नहीं जानता? मुस्ताक का जेहन ही कुछ और है भाई। क्या करू परेशान हूँ। हर लटकी चीज़ को पकड़ना चाहता हू कि यहीं से कोई रहमत गिरे।
"तो द्वारकानाथ ने क्या कहा?
कहूंगा। चलिए अंदर कतार आगे बढ़ गई। वे सब कमरे में दाखिल हो गए। हसनपीर व्यस्त था। चाकू को जोर से नब्ज पर मारते हुए वह आखें मूदता और होठों के स्पदन से पता चलता कि वह कुछ पढ़ रहा है। मंत्र की तरह। "सकोरे लाई हो तुम? सामने बैठी स्त्री से हसनपीर ने पूछा।
"हा हजरत।"
कितने
चार जैसा कि हुजूर ने फरमाया था।
कुछ फर्क….?
हजरत अभी कुछ खास नहीं बराबर घर से गायब रहता है। इम्तहान में तो बैठा ही नहीं। बोलता है पदूंगा नहीं। जिहाद करुगा। पता नहीं चलता हुजूर कि कहा जाता है। कहा रहता है? हजरत परेशान हूँ। कुछ करिए (कहिए) और वह फफक-फफककर रो पड़ी हसनपीर के पैरों पर गिर पड़ी।
पता नहीं क्या हुआ है आजकल के लड़कों को लाओ इधर दो पाक हो? माहवारी तो नहीं है?
नहीं हुजूर|”
आज जुम्मा है आज ही दरिया में डालना और गर लड़के की फिक्र है। मास मछली से परहेज करना जाओ जाते ही डाल दो।"
पानी के बह रहे दो चश्मे लेकर वह उठी। पीर के पैर फिर से हुए और चल दी। अल्लाह। तीबा पीर ऊँची और भरकम आवाज में बोला। फिर शाल को चाकू पकड़ाया ले फाड़ इस मछली का पेट |
शाल ने मछली को बाएं हाथ में रखा और एक ही काट में मछली का पेट काटा।
लीजिए हुजूर।"
देखते ही ढेर सारी आलपिनें हसनपीर ने शाल को पकड़ा दीं।
चौबीस इधर से चौबीस उधर से जानते होबशाल ने पिने ली।
हसनपीर ने फिर एक युवती की नब्ज पर धम से चाकू मारा। मंत्र फुसफुसाने लगा। फिर एक जोरदार आवाज मुंह से निकाली।
"यह क्या हो रहा है? पूरे शहर की नब्ज पर चाकू मारा जा रहा है।"
संदेह सूइया इंतकाम चाकू हथियार हथियार हथियार कहते हैं इस शहर में बहुत से हथियार घुस आए हैं। कल बोबा गफ्फार दूध वाले से कह रही थी गरे गए वे दिन जब पुलिस गोली दागती थी तो भीड़ पथराव करती अब भीड़ ही गोली चलाती है और पुलिस कहती है हमारे भी बाल-बच्चे हैं। दिन बदल गए हैं गरे क्या करेगी फौज मरेगी ससुरी अब आएगी बात समझ में ।
बोबा गफूरे को नहीं उसे सुना रही थी पीर ने फिर धम्म से चाकू मारा और चाकू को नब्ज पर बनाए रखते हुए मंत्र पढ़ता गया। वजीरा जरा सी चीसी पर चीख के आरोह में ही अवरोह भी हुआ। वह सुन्न-सी हो गिर पड़ी। सम्मोहित शाल सावधानी से एक-एक मछली के पेट में स्थापित करता है जैसे विष के बीच बो रहा हो।
याकूब ने चुप्पी तोड़ी देखिए जमाने से कर रहे हैं हसन साहब पीरगी देश-विदेश से आते हैं लोग इनके पास दूर-दूर तक मशहूरी है। कई जबरदस्त केस सुलझाए हैं। जिनाब एक आदमी का बेटा दस साल बाद पाकिस्तान से वापिस लौटा लुटा पिटा नुचा-सा। जैसे सारा खून पिया गया हो। खुदा के करम से अब शादी. भी हो गई।
कुछ नहीं। उसने कहा तो कुछ नहीं। दरअसल मेरी ही कमअवली। मुझे अहसास रहा कि द्वारकानाथ मेरे घर में पढ़ी बंदूक को देख रहा है।
"मास्टर जी आ गए। बाअदब अदब भी तो खूब जानते हैं ये दल्ले सो तो है।"
आपकी तबीयत नासाज थी वह बोल ही रहा था मैंने टोका, मास्टर जी आप जानते हैं मैं बीमार नहीं था आप अच्छी तरह जानते हैं।
"नहीं-नहीं मैं तो कुछ नहीं जानता इसके सिवा
सच्चाई की सारी शिद्दत उसके चेहरे पर आई. पर मैं समझा कि द्वारकानाथ बन रहा है-आखिर पण्डित है माहिर। दरअसल दहशत मुझे ही थी। उसे सचमुच मेरे बीमार होने पर यकीन था।
खैर शकभरा यकीन तो मैंने भी किया और मैंने उससे कहा मुश्ताक साहब पाकिस्तान गया था इम्तहानों के बाद…?
जिनाब पता है रुख्सत लेने तो मेरे पास भी आया था।"
नादान है। पाकिस्तान खासतौर पर आजाद- कश्मीर में इल्म की कम ही रिवायत है.
“सो तो है.
तो मौसा ने बंदूक दी तोहफे में शुक्र है…?
सलामत पहुंच गया।
"बंदूक? द्वारकानाथ ने जीम दातों तले दी और हैरानी से आखें फाड़ ली।
मुश्ताक साहब ने मना नहीं किया?
द्वारकानाथ ने क्या कहा था आपसे?"
नहीं लाख जहीन हो मुअतबर तो नहीं है. बच्चा ही तो है...तो मास्टर जी में इसी फिक्र में हूँ कि बंदूक का क्या करू? घर में नहीं रख सकता।
असदुल्ला साहब पण्डित डरपोक होते हैं. जरा-सा डर गए कि दाल निकल गई. मुझे लगता
था मास्टर जी से राय ली जा सकती है।
"तो?" उसकी आवाज दबी-सी थी।
"मास्टर जी आपको ही मदद करनी पड़ेगी
किस तरह? याकूब साहब आप किस तरह चाहते हैं मैं मदद करू…?
मास्टर जी आप बंदूक अपने घर में रखेंगे मेरे लिए। बखुदा यह बढ़िया तरीका है। मुश्ताक को आप भी पिता की तरह प्यार करते हैं ,, है न?
मास्टर जी का चेहरा पीला पड़ गया। आखें फर्श पर बिना झपकाए गड़ी रहीं। न अल्ले बोल पाया न बल्ले
मैंने झिंझोड़ा मास्टर जी क्या सोच रहे हो? क्या हर्ज है? हर्ज है क्या? हो न दाल? निरी दाल बल्लाह?
मास्टर मेरी ओर देखने लगा। अनमना । जैसे कहा हो फांसी चढ़ने को ज़ेबा चाय लाई तो मास्टर जैसे जहर पी रहा हो। मैंने कहा-परेशान मत होइए मास्टर साहब! इल्मवाले हर मुसीबत का जा। हल निकालते हैं। आपको लग सकता है कि काम गलत है, है भी गलत मैं नहीं कहता कि काम अच्छा है पर मुसीबत में फसना क्या करें। औलाद के लिए आदमी सूली पर भी चढ़ जाता है क्यों आप भी तो पिता है ।
"मैं जानता था कि वह परेशान है और लय में चाय की चुस्किया नहीं ले पा रहा पर में उसे समझा रहा था।
"इनके पास अकल की बंदूक वैसे ही क्या कम है उसी से काम चलाते हैं अरे इन्हीं की मार्फत तो हिंदुस्तान। धांडडाय असदुल्ला बोल रहा था।
शाल ने सफेद लट्ठा लिया और उसमें मछली को ऐसे सीने लगा जैसे लाश का कफन सी रहा हो लट्ठे में सी हुई मछली पौर को पकड़ाई। पीर ने इशारे से दुर्गावती को बुलाया लो अब गुणवती । का काम हो गया पर ध्यान रखना कोई नहीं देखे।
"अच्छा हुजूर। दुर्गावती गद्गद् होकर चल दी।
दुर्गावती के जाने से जो जगह खाली हो गई थी उसने सबको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
कैसी हो मरी?
अफरोजा कुछ बोल न पाई। पानी से उसकी दोनों आखें भर आई।
"फर्क है कुछ?
"कुछ नहीं हजरत। पता नहीं चलता। घर में सबसे खुसर- फुसर करता है।"
"तेरी सास भी है न चुड़ैल कुतिया पर कीड़े पड़ेंगे। दिल मत हार अफरोजी उठ खड़ी हो
ले इसे नदी में डालना और शाम को इस पर अपने जूते से दस बार मारना ख्याल रखना जूता तुम्हारा ही हो सोता है न पास? अफरोजा शर्माई
"लो यह उसे किसी तरह पिला देना।"
वह चुपचाप आंसू बहा रही थी पीर ने पीठ थपथपाई और वह चल दी।
अभी-अभी पाकिस्तान से छ माह बिताकर आया खाविंद। कितनी हसीन लड़की है। धूल में
मिली न जाने क्या हुआ है जवानों को?
उसने दादी पर हाथ फिराया। कुछ मंत्र जैसे फुसफुसाए। कानों में गूज रही हैं प्रतिध्वनियां- पाकिस्तान पाकिस्तान पाकिस्तान यह कैसी बा है । उसे लगा वह आग के घेरे में हैं, अपने लिए जरा सी जगह निकाले। अफरोजा के जाने पर लोग आगे-आगे सरकने लगे।
असदुल्ला और याकूब अब एकटक और तन्मय ढंग से पीर को देख रहे थे और धैर्य से अपनी बारी का इन्तजार कर रहे थे। याकूब के चेहरे पर परेशानी की तीव्रता पारदर्शी है।
याकूब साहब। फिर बंदूक का आपने क्या किया?"
"मास्टर जीन ने बच्चों को पढ़ाना बंद किया। कहा टाइम नहीं है और देखते-देखते देख रहे हो यह वथा। बंदूक मैंने अपनी सदूक में रखी हैं फिलहाल । चाबी मेरे पास है। याकूब बोलते-बोलते कई बार अपनी खोपड़ी पर हाथ फेर गया।
'द्वारकानाथ कहां है?"
"घर पर पर हो न हो उसी ने लौंडे को गिरफ्तार करवाया है। उसे धमकी मिली है सुना अब।" है। जो उसने पुलिस में दिखाई होगी साथ ही बताया होगा कि बदूक है न? याकूब को अपने संदेह पर स्वयं संदेह था जो वह असदुल्ला की मदद से पुष्ट करना चाहता था, पर उसके चेहरे पर आश्चर्य भी गहरा रहा था। होंठों के इंगित से उसने भी संदेह ही प्रकट किया।
"छोकरा बस छूट जाए बस वल्लाह अब कसम खाई है
असदुल्ला बराबर कुछ न कह सकने की स्थिति में स्वयं को पा रहा है।
छूटा नहीं?
"नहीं हुजूर!"
फोटू लाए
यह लीजिए हुजूर।
पीर ने शाल को फोटो पकड़ाई। इसे कोने से जला दो। छोकरों में तबाही मच गई है।
"हा जिनाब।"
"समझना चाहिए। इतना जोश ठीक नहीं। क्या चाहिए उन्हें?"
शाल ने फोटो कोने से जलाकर वापस पीर को थमा दी।
पीर ने नेजे से सुराख में से धागा डालकर याकूब को फोटो पकड़ाते हुए कहा. इसे उसकी पढ़ने की जगह टाग देना। फिक्र मत करो। दो एक दिन में छूट जाएगा। सुनकर याकूब की आखें भर आई। पपडियाये होठों पर फिर एक बार जीभ फिराई।
पीठ थपथपाते हुए पीर बोला, "वैसे लौड़े को समझाना। पाकिस्तान स्याह रेत का नाम है-जाओ अब
उसने अपनी पूरी चालाकी से फिरन के गले से हाथ निकाल बिंदी हटाई। किसी ने नहीं देखा, इस संदेह की पुष्टि के लिए सब पर एक चोर निगाह फेरी और एक क्षणिक सात्वना के बीच स्कार्फ सिर पर कस कर बाघा ताकि कानों के ऊपरी छेद न दिखें।
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साभार:- डॉ. क्षमा कौल एंव जून 2023 कॉशुर समाचार