कहानी  - शोध

कहानी  - शोध


कहानी  - शोध

 (गत से आगे)

तसलीमा नसरीन

मैं हारुन की आँखों में अब और धूल झोक सकूँ इसीलिए मेरा मायके जाना बन्द इस घर से बाहर पैर निकालना बन्द हारून ने मुझे किसी पिन्जरे में कैद कर लिया था। अनीस ने मुझे बॉक्स बाजार की सैर पर जाने को कहा है। उसने मुझे वारी जाने की सलाह दी है। अनीस समझ गया है। कि मैं अन्दर-ही-अन्दर बेतरह बेचैन रहती हूँ। इस घिसी-पिटी घुटनभरी जिन्दगी में मेरा दम घुटने लगा है। टुकड़ा भर आसमान देखने के लिए मुझे इस कोठी के बित्ता भर बरामदे में खड़ी होना पड़ता है. गाड़ी की खिड़की से झांकना पड़ता है। सुना है कि जो इन्सान खुला आसमान नहीं देख पाता, प्रकृति की गोद में जाकर स्निग्ध हंसी नहीं बिखेर पाता, उसके मन को जग लग जाती है।

इस मकान की निचली मन्जिल में एक दम्पती किराएदार बसे हैं। बीवी डॉक्टर है। मेरी बीमारी के दौरान वह डॉक्टर बहू कई बार ऊपर मेरी खैरियत पूछने आती रही। मैंने उसे भी नहीं बताया कि गर्भपात के बाद, मुझे बुखार चढ़ गया है। दवा-दारू से स्वस्थ हो लेने के बाद सेवती मुझे कुछेक विटामिन थमा गई थी। जिस दिन वह विटामिन देने आई थी वह जरा फुर्सत में थी इसलिए काफी देर तक बैठी-बैठी मुझसे गपशप करती रही। यह गपशप मियां-बीवी या घर-गृहस्थी के बारे में नहीं थी किसी और ही तरह की थीं।

एक बार वह बाघ देखने, सुन्दरवन गई थी। वहाँ उसने बाघ देखा भी बाघ की कहानी । बाघ नामक जीव बेहद अकेला होता है। सिंहों की तरह उसका सामाजिक जीवन नहीं होता। उसके किस्से सुनकर मुझे बाघों पर असीम ममता उमड़ती रही। ये बाघ कैसा असम्भव अकेलापन झेलते हैं। सहवास के मौसम में बाघ और बाधिन साथ-साथ रहना शुरू करते हैं। बच्चे के जन्म देने के बाद बाघिन बाघ को खदेड़ देती है। बाघ कहीं अपने ही बच्चों को निगल न जाए।

सेवती का पति अनवर कोई एन जी ओ चलाता था। सेवती ढाका मेडिकल में डॉक्टर थी। जिस दिन उसकी रात की ड्यूटी होती है, दिन-भर कमरे में बैठे-बैठे खामखाह वक्त बर्बाद करने के बजाए वह मुझसे गपशप करने के लिए ऊपर चली आती है। इस तरह धीरे-धीरे सेवती से मेरी एक किस्म की दोस्ती का रिश्ता बन गया है। घर में भी किसी ने इस पर एतराज नहीं जताया। इस घर में लोग सेवती को काफी पसन्द करते हैं। जब वह आती है, सासजी भी काफी खुश हो जाती हैं। वे उसके सामने अपने बदन दर्द, श्वसुर के गैठिए का दर्द दाँत दर्द सारा कुछ बयान करतीं। सेवती उनके लिए दवा लिख देती। मुफ्त का डॉक्टर मिल जाए तो उसे दिखाने का मन किसका नहीं होता? सेवती इस घर में बैठकघर की मेहमान नहीं थी। वह मेरे बेडरूम में किसी भी वक्त अनायास ही दाखिल हो सकती थी।

'तुम अपनी कोख में बच्चा क्यों नहीं लेतीं, झूमुर सेवती ने पूछा।

अब लूँगी। हारुन भी बेतरह बच्चा चाहता है। सेवती ने दबी दबी आवाज में पूछा, हर रात तुम दोनों में सेक्स तो होता है न?

मैं शर्म से आरक्त हो उठी। अपना चेहरा ढककर मैं हँस पड़ी।

सेवती में लाज-हया नामक कोई चीज नहीं है। यह कुर्सी से उठकर बिस्तर पर आ बैठी।

उसने फुसफुसाकर पूछा तुम्हारी माहवारी तो ठीक तरह होती है न?

हाँ यह तो होती है।

मुझे भी होती है। चलो ठीक है। देखते हैं कौन पहले अपनी कोख में बच्चा पालती है? सुनो, और कोई दिन भले बाद दे देना, मगर तेरहवीं तारीख हरगिज खाली मत जाने देना।

सेवती की जुबान पर कहीं कोई लगाम नहीं है।

पता है मेरी माहवारी के बाद दसवें से सोलहवें दिन तक अनवर अपने दफ्तर से छुट्टी ले लेता है और मुझे सुबह-शाम नेस्तनाबूद करता रहता है। मेरे तन-बदन की नाहीं कर डालता है।

उन सात दिनों में सत्तर बार हमारा सेक्स होता है और बाकी दिन में आराम करती हूँ। सेवती यह बताते हुए हँसते-हँसते लोटपोट हो गई।

 

मेरे दिन ऐसे ही गुजरते रहे। हमारे घर में नोबाखाली के गाँव से झुण्ड भर लोग आ धमके। सासजी ने कहा ये लोग तुम्हारे चचिया सास-ससुर है।

सिर पर लम्बा-सा घूँघट डाले मुझे उन लोगो के गंदे-शदे पाँव छूकर सलाम करना पड़ा। सासजी ने खिड़की की रोशनी में मुझे खड़ा करके मेहमानों को मेरे बदन का रंग दिखाया। उन लोगों ने भी सिर हिलाया यानी रंग तो कुछ बुरा नहीं है। सासजी ने मेरा घूँघट उघाड़कर मेरे लम्बे कॅश उनकी आँखों के सामने लहरा दिया। मेरे बाल देखकर वे लोग बेहद सन्तुष्ट हुए ।।

हारुन को अच्छी बहुरिया मिली है- उन लोगों ने नन्तत्य किया।

इसके बाद सासजी खाना पकाने के बावत, मेरी प्रशंसा-पुराण खोलकर बैठ गई। उन्होंने बताया रसोई में मेरा हाथ काफी भेजा हुआ है। पूरे घरवालों के लिए मैं अपने हाथों से खाना पकाती हूँ। उन्होंने यह भी कहा कि इस घर में मेरा कदम पड़ने के बाद उन्होंने चैन की साँस ली है। अन्त में उन्होंने यह भी कहा कि अब वे अपने घर-गृहस्थी की जिम्मेदारी बेटे-बहू पर सौंपकर बेफिक्री से दिन गुजार रही है।

''बहूरानी जरा पनडब्बा तो उठा लाना-

पनडब्बे से पान निकलाकर अपने मुँह में डालने के बाद उन्होंने मेहमानों को भी खिलाया और उन्हें गर्व से बताया कि मेरे पापा विश्वविद्यालय में बड़े प्रोफेसर हैं। मैं पढ़े-लिखे खानदान की लड़की हूँ। बाप के पास ढेरों दौलत है। इस ढाका शहर में अपना निजी मकान होना क्या कम बात है? बेटी भी पढ़ी-लिखी है !

कोई भी बाहरी व्यक्ति आ जाए सासजी मेरे बारे में बढ़ा-चढ़ाकर बखान करती थीं। लेकिन जब मैं अकेले कमरे में उनके पके बाल चुनती थी. वे मुझे भी सुनाने से बाज नहीं आती थीं।

'तुम तो बहू इस घर में खाली हाथ चली आई। हारून के ब्याह की बात तो एक ब्रिगेडियर की लड़की के साथ चल रही थी। तुम्हारी जगह अगर वह लड़की आती तो इस घर में नए-नए सामान आते फ्रिज टेलीविजन सोना दाना बहुत कुछ आता। बारह तोले सोना देने की बात तय हो चुकी थी। तो वह विवाह हुआ क्यों नहीं?

हारुन ही अड़ गया कि वह तुमसे ही विवाह करेगा। बेटे को रोकना हमारे वश में नहीं था। दिन इसी तरह गुजरते रहे।

थोड़ा-बहुत सच और बाकी सब झूठ में ही वक्त करता रहा। जब सेवती आती थी सिर्फ तभी ऐसा लगता था कि चलो कोई एक इन्सान तो मिला जिससे दिल की बात की जा सकती है। दिन गुजरते रहे। कोई तो ऐसा शख्स है, जिससे लिपटकर रोया जा सकता है, सँग-सँग हँसा जा सकता है, बाहर की दुनिया के किस्से सुने जा सकते हैं कोई तो है, जिससे अपनी इस छोटी-सी दुनिया के बारे में कहा सुना जा सकता है। आजकल तो मैं यह भी भूलती जा रही हूँ कि मेरा शैशव बचपन किसी सभ्य-शिक्षित परिवेश में गुजरा था। मेरे पापा-मी हमेशा मुझे लिख-पढ़कर सच्चा इन्सान बनने और अपने पैरों पर खड़े होने की सीख देते रहे। बचपन में उन दोनों से ही यह सीख सुनकर में हँस देती थी। मुझे लगता था अभी भी इन्सान ही है जन्तु नहीं और अपने दोनों पैरों पर ही तो खड़ी हूँ। लेकिन अब जाकर उनकी हिदायतों का मतलब समझ पाई हूँ। सच तो यह है कि स्कूल कॉलेज विश्वविद्यालय- सारे पड़ाव पार कर आने के बाद नी, मैं अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो पाई। अपना कहने को मेरा कुछ भी नहीं है। अब तो गैर भले तो मैं भी भली पराए सुखी तो मैं भी सुखी। दूसरों की तकलीफ ही अब मेरी तकलीफ है। हो इसीलिए होगी।" जब घर में यह खबर आई कि हारुन को कारोबार में दस लाख रुपयों का नुकसान हुआ है तो सब बैठे रहना पड़ा।

हारुन जब घर लौटा तो उसके सामने खाना परोसकर उसकी बगल में बैठना पड़ा।

मैंने बेहद शोकविह्वल लहजे में पूछा बहुत नुकसान हो गया न जी?

हारुन का चेहरा उसी तरह भारी बना रहा। उसकी थाली में और दो टुकड़े गोश्त डालते हुए मैंने पूछा यह अचानक इतने सारे रुपए कैसे चौपट हो गए जी?

तुम यह सब नहीं समझोगी हारून ने सख्त लहजे में जवाब दिया।

 

हां इसी तरह अबूझ और नासमझ बनी मेरे दिन गुजरते रहे।

हारुन जब घर लौटा, दोलन बगल के कमरे में बैठी-बैठी महीन आवाज में सुबक रही थी। मैं अचकचा गई। ठीक इसी वक्त दोलन से क्यों रही है? सास जी हाथ में तस्वीह झुलाए हारुन के सिरहाने आ बैठी। उसके माथे पर फेंक मारते हुए उन्होंने रानू से उसके लिए निम्बू का शरबत लाने की हिदायत दी। शरबत लाने को वह मुझसे भी कह सकती थी मगर उन्होंने रानू को शरबत लाने का हुक्म दिया। वैसे हारुन जब घर पर न हो, तब सभी घरवालों की शरबत पिलाने की जिम्मेदारी मेरी थी ।

हारुन को शरबत पिलाकर सासजी ने बेहद नरम आवाज़ में बात छेड़ी हारून के इस नुकसान पर सबसे ज्यादा दुःखी है-दोलन अनीस तो जब से रुपए लेकर गया, तब से उसका कोई अता-पता नहीं है। कोई खोज-खबर भी नहीं दी कि वहाँ क्या चल रहा है? उसकी खबर भी तुझे ही लेनी

दोलन हारुन की इकलौती और सगी बहन है यह बात हारुन को बखूबी याद थी, मगर उन्होंने उदास हो आए। मुझे भी दुःखी दुःखी चेहरा बनाए दुबारा याद दिलाई।

हारुन के कारोबार में इतने बड़े धक्के के बाद सासजी नमाज अदा करने में काफी जोर-शोर से जुट गई। नमाज के साथ फरज तो था ही। अब दे सुन्नत और नफर भी अदा करने लगी। में हस्बेमामूल घर-गृहस्थी के धर्म निभाने लगी. उन्होंने मेरे कामकाज के धर्म के साथ एक और धर्म साँप दिया। मैं नियमित रूप से नमाज अदा करूँ और हारून के लिए दुआ करूँ ।

मैंने गर्दन खुजलाते हुए जुबान काटकर कहा 'नमाज तो मुझे..."

मैंने अपना वाक्य पूरा भी नहीं किया था किमुझे नमाज पढ़ना ठीक तरह नहीं आता इससे पहले ही सासजी कह उठीं औरत होकर नमाज नहीं पढ़तीं यह कैसी बात?"

हारून ने खुद मेरी हतबुद्ध हालत देखी। मैंने उसकी तरफ भी असहाय नजरों से देखा। मुझे उम्मीद थी कि वह मुझे इस स्थिति से रिहाई दिलाने के लिए आगे बढ़ आएगा। वह घरवालों को समझाएगा कि नमाज पढ़ने के लिए झूमुर से जोर-जबर्दस्ती करने की जरूरत नहीं है। लेकिन हारून ने कुछ नहीं कहा। अगले दिन शाम को ही ने अपने दफ्तर के पिउन के हाथ उसने नमाज पाठ की एक पुस्तिका भेज दी। बस उसी दिन से शुरू! अब मुझे सुरा की आयतें रटकर अपनी सास जी के साथ पाँचों वक्त के नमाज के लिए खड़ा होना पड़ता था।

मुनाजत से पहले सासजी ने कहा, हारून के लिए दुआ करो दुआ करो कि उसका शरीर सेहत और कारोबार ठीकठाक रहे। उसे बहिश्त नसीब हो ।

अल्लाह के आगे यूँ हाथ फैलाकर कुछ माँगना मेरी आदत में नहीं है। लेकिन हर रोज हारुन के सुख सेहत वित्त- वैभव के लिए प्रार्थना करते-करते जब मुझे सिर्फ दूसरों की मंगल कामना करने की आदत हो गई है। अब भी मुझे अपने लिए मागना नहीं आया।

दिन यूँ ही गुजरते रहे।

अस्वीकरण :

उपरोक्त लेख में व्यक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं और kashmiribhatta.in उपरोक्त लेख में व्यक्त विचारों के लिए किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। लेख इसके संबंधित स्वामी या स्वामियों का है और यह साइट इस पर किसी अधिकार का दावा नहीं करती है।कॉपीराइट अधिनियम 1976 की धारा 107 के तहत कॉपीराइट अस्वीकरणए आलोचनाए टिप्पणीए समाचार रिपोर्टिंग, शिक्षण, छात्रवृत्ति, शिक्षा और अनुसंधान जैसे उद्देश्यों के लिए "उचित उपयोग" किया जा सकता है। उचित उपयोग कॉपीराइट क़ानून द्वारा अनुमत उपयोग है जो अन्यथा उल्लंघनकारी हो सकता है।

साभार:- तसलीमा नसरीन एंव जून 2023, कॉशुर समाचार