दूर से आए हैं
ब्रज नाथ कौल कोमल
ए गुजरती हवा
चल के आए हैं हम अजनबी यह शहर है
यह चेहरे नए
दीप यादों के हमने जलाए अभी
पार परबत थी बस्ती हमारी सुन्दर
पर अचानक वह बस्ती उजड़ ही गई
बीच पेडों के था, इक हमारा भी घर
गीत गाती थी कोयल सवेरे वहां और
साज बजते ही रहते थे हर पल वहां
पर जमाने ने हम पर हैं ढाए सितम
चैन की नींदें हम को हुई कब नसीब !
छोड़ कर घर चले हम सहर के समय
अलविदा कह गए, दूर होते गए
गाय बाहर गई थी सवेरे ही आज
लौट आई होगी
सूने सूने से आंगन में बैठी होगी
आंगन में मेरे सबको सहलाना तू!
हाल घर का हमें, फिर सुनाना जरूर !
सह तो सकते हैं हम
धीरे धीरे से सब कुछ सुनाना मगर !
मन यह कोमल, यह चंचल
यह नाजुक सा मन
हा तड़प जाएगा
हा मचल जाएगा
पर, बहल जाएगा
लम्हा भर के लिए।
अस्वीकरण:
उपरोक्त लेख में व्यक्त विचार अभिजीत चक्रवर्ती के व्यक्तिगत विचार हैं और कश्मीरीभट्टा .इन उपरोक्त लेख में व्यक्तविचारों के लिए जिम्मेदार नहीं है।
साभार:- ब्रज नाथ कौल एंव दिसम्बर 2022 कॉशुर समाचार