सदवचन  -  बदलते साए

सदवचन  -  बदलते साए


सदवचन  -  बदलते साए

विजय कौल  

यह जीवन ईश्वर की देन है। सुख-दुःख तो हमेशा ही बदलते मौसम की तरह इसके साथ लगे रहते हैं। कभी सुख अधिक होते हैं और कभी दुःख अधिक होते. हैं। मनुष्य को किसी भी दशा में आत्म संतुलन नहीं खोना चाहिए। न तो उसे दुःखों से घबरा कर भागने की चेष्टा करनी चाहिए और ना ही उसे अपने सुखों में मस्त होकर अपने आस-पास की दुनिया को भूल जाना चाहिए।

मनुष्य के जीवन में केवल सुख-दुःख ही नहीं अपितु लोगों का साथ भी बदल जाता है। कभी तो वह किसी फलों-फूलों से लदे पेड़ की तरह अपने सगे-संबंधियों तथा जाने-पहचाने लोगों से घिरा रहता है और कम्सी उसे सबसे कटकर अकेले ही रहना पड़ता है। उस समय उसकी हालत किसी ठूंठ वृक्ष से कम नहीं होती। कभी दूसरों से मिलने पर वह खुश होकर हंसी के ठहाके लगाता है और फिर कभी उनसे बिछड़ने पर दुःखी होकर उसकी आंखों से आंसुओं की धारा बहती है। परंतु मनुष्य को यह कभी भी नहीं भूलना चाहिए कि इस जीवन में मिलना और बिछुड़ना लगा ही रहता है, क्योंकि

"वक्त भी क्या-क्या करतब दिखाता है साथी,

अनजानों को मिला देता है, जाने-पहचाने बिछड़ जाते हैं।"

मनुष्य का मन भी क्या चीज है। कभी जिनके साथ कोई संबंध नहीं रहा हो उन्हीं को अपनाकर वह खुशी से फूला नहीं समाता। परंतु जब यही प्रियजन जीते जी या भर कर बिछुड़ जाते हैं तो मनुष्य का मन बहुत दुःखी होता है। वह लाख कोशिश करने पर भी नहीं संभलता । वह इस तथ्य को भूल जाता है कि इस जीवन में पेड़ों के साए की ही भांति लोगों का साथ भी बदल जाता है।

मनुष्य के जीवन में अमीरी-गरीबी तथा उसके स्वस्थ या अस्वस्थ होने पर भी लोगों का प्रेम तथा घृणा निर्भर करती है परंतु उसे दूसरों से नफरत पाने पर भी नहीं घबराना चाहिए और पूरी आस्था के साथ अपने दिनों के बदलने का इंतजार करना चाहिए क्योंकि "कभी नाव गाड़ी पर और कभी गाडी नाव पर सवार होती है।" कहा जाता है न कि "समय की गति बड़ी बलवान होती है।" इसलिए उसे इस बात को कभी भी नहीं भूलना चाहिए कि भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं।"

कभी तो पराए लाग भी इस मनुष्य के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं परंतु कभी अपनों से दुर्व्यवहार पाकर मनुष्य का मन टूटकर शीशे की तरह चकनाचूर हो जाता है और बार-बार यह कहकर चीत्कार कर उठता है कि

"गैर तो फिर भी अच्छे हैं, जो मिलते हैं कभी हंसकर अपनों से खुदा बचाए, जो निकल जाते हैं नजर बचाकर ।"

जिस प्रकार पेड़ों के झुरमुट में चलने पर पेड़ों के साए बदल जाते हैं, ठीक उसी प्रकार मनुष्य के जीवन में भी कभी कुछ और कभी कुछ होता है जिस प्रकार मौसम कभी एक जैसा नहीं रहता है, ठीक उसी प्रकार मनुष्य के दिन भी कभी एक जैसे नहीं रहते बदलते मौसम के लिए सच ही तो कहा जाता है:

"ईश्वर की माया, कभी धूप, कभी छाया ।"

ठीक इसी प्रकार मनुष्य के लिए यह कहना ठीक रहेगा:

"सुख-दुःख का जोड़ा यहां, सदा रहा है सग।

कभी प्रीत का गीत है, कभी विरह का रंग।

संक्षेप में, यह कहना उचित रहेगा कि इस दुनिया में जन्म लेने वाले हरेक मनुष्य के जीवन में हर समय सुख-दुःख, खुशी-गम मिलना-बिछुड़ना, हंसना रोना, - स्वस्थ - अस्वस्थ, अमीरी-गरीबी इत्यादि बदलते साए की तरह आते-जाते रहते हैं। मनुष्य को संतुलित मन से सबका सामना करना चाहिए किसी मनुष्य के हालात के साथ-साथ दूसरों का स्वभाव भी किसी हद तक बदल जाता है। न तो दोस्त ही हमेशा दोस्त रहते हैं और न ही दुश्मन हमेशा दुश्मन रहते हैं।

"जीवन के कुछ ही पल मिले हैं साथी,

कुछ हंसकर गुजारे और कुछ रोकर।"

या यूं कहिए, दीए रूपी को आंधी तूफान रूपी 'मनुष्य' मुसीबतों का पूरी हिम्मत के साथ खूब डटकर मुकाबला करना चाहिए। यही जीवन है और यही जीवन-दर्शन ।

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साभार:- विजय कौल एंव कौशुर समाचार, जनवरी, 2009