​​​​​​​तीन प्रकार के पलायन कर्ता

​​​​​​​तीन प्रकार के पलायन कर्ता


तीन प्रकार के पलायन कर्ता

बी  के

प्राचीन कहावत है कि बेकार दिमाग शैतान का घर होता है। कभी-कभी बड़ी मजेदार कहानियां सुनने को मिलती है। दो पलायन कर्ता शिव मन्दिर के खुले बगीचे में अपने सुख-दुःख की बातें कर रहे थे। एक श्रीमान जी बोले भाई बात सकते हो कि विस्थापित लोगों की कितनी किस्में होती हैं। दूसरा झठ से बोला कि कहीं तुम पागल तो नहीं हो गए। क्या पलायन करने वालों के भी दर्जे बनाए गए। घरबार, जमीन जायदाद छोड़ कर आए लोग एक ही श्रेणी में आते हैं। पहला व्यक्ति हंस पड़ा और बोला कि तुम्हें तो कुछ पता ही नहीं। हमारी बरादरी तीन प्रकार के ढंग से पलायन कर चुकी है। प्रथम श्रेणी में वह लोग आते है जो हालात को पहले से ही समझ गए थे तथा काफी समय रहते आराम से चले आए। सामान भी कुशल पूर्वक उठा सके। अपना नया ठिकाना भी बना सके। दूसरी श्रेणी में वह लोग आते हैं जो जाना नहीं चाहते थे किन्तु धमकी के कारण अपनी जीवन लीला को खतरे में देखकर तथा बहू-बेटियों की लाज बचाने के लिए भागे। तीसरी श्रेणी में वह लोग आते हैं जिनका घर से निकलने का कोई विचार ही नहीं था। तनावपूर्ण वातावरण देख कर भी साहस दिखा रहे थे तथा पास-पड़ोस के लोगों की विनय और विश्वास पर भरोसा कर बैठे। किन्तु स्थिति के अचानक तथा अधिक खराब होने पर केवल तन पर लगोटी और हाथ में कमण्डल लेकर ही भाग जाना पड़ा। उनको यह पलायन आजीवन याद रहेगा। वह मानसिक यंत्रणा अधिक देर तक सहते रहे।

सुनने वाला बड़े ध्यान से सुनता रहा और अन्त में बोला कि हम कौन-सी श्रेणी में आते है। पहले श्रीमान जी ने हंसते हुए कहा कि आप प्रथम वर्ग में आते ही तथा मैं तीसरे वर्ग में आता हूं। हम दोनों में बड़ा अन्तर है। दूसरा बोला वह कैसे? पहले ने उत्तर दिया भाई बुरा नहीं मानना सच कड़वा होता है लेकिन आप पूछते हो तो बता ही दूं। तुम्हें पारिवारिक शांति है। व्यवसाय भी चल रहा है पलायन के बाद दो बच्चों की शादियां भी की। मेरी प्रार्थना को जान-बूझ कर ठुकराया जो दो वर्ष पूर्व मैंने की थी। याद है जब श्रीनगर में मिलते थे तो तुम अपने राजू के लिए मेरी लाडली बेटी का रिश्ता मांगते थे। हमारा आपस में स्नेह था प्रेमभाव था परन्तु जब जम्मू आकर मैंने उसी बात को याद कराया कि अब शादी का कार्यक्रम बनाओ और मेरी बेटी को बहू बनाकर घर ले जाओ तो तुमने दो टूक जवाब देकर मुझे हैरान कर दिया। यह भी कोई भूलने की बात है। सारा जीवन हम याद रखेंगे। तुम से तो ऐसी कल्पना कभी नहीं की थी। अपनी बिरादरी में यही तो अभिशाप है। विस्मय हो रहा है तुम्हें देखकर। अब तो विश्वास ही उठ गया दोस्ती पर क्या दोष था, क्या कमी थी मेरी बेटी में केवल यही ना कि मैं तीसरे दर्जे का पलायन कर्ता था और मेरी पतली हालत भांप कर तुमने आंखें फेर ली। हमारी जाति कैसे प्रगति करेगी जब कि हम सुख-दुःख में एक दूसरे का साथ न दें। मान सम्मान न करें। जितना रुपया अपना शान दिखाने पर खर्च किया उससे दो बेसहारा परिवारों की अनब्याही लड़कियां किसी ठिकाने लग जाती। हमारी आपसी सहानुभूति न होने के कारण स्थिति बहुत बिगड़ती ही जा रही है। हमारी बेटियां अब अपनी जाति से बाहर दी जा रही हैं। दिन-ब-दिन हालात विपरीत होते जा रहे हैं। अब मध्यवर्गीय लोगों पर भी प्रभाव होने लगा है। यदि हम अपनी जाति को ऊपर उठाने का प्रयास न करें तो आने वाला समय हमें कभी माफ नहीं करेगा। यह मेरा अनुभव है तथा तुम जैसे लोगों के लिए सविनय प्रार्थना है कि अब भी चेते। परिस्थितियां एक जैसी नहीं रहती। इतना कुछ होने के उपरांत भी हमारी सामाजिक त्रुटियां वहीं की वहीं खड़ी है। लेन-देन, दाज - दहेज तथा झूठी शान हमको कहां ले जाएगी यह भगवान ही जानता है।

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साभार:- बी. के. घर एंव अप्रैल-मई 1995 कोशुर समाचार