बात चीत  - सुरभि

बात चीत  - सुरभि


बात चीत  - सुरभि

सिद्धार्थ काक 

'सुरभि मेरी अपनी ही खोज यात्रा है।'

यह कहना है 'सुरभि' के निर्माता सिद्धार्थ काक का, जिनकी अनूठी कल्पनाशीलता और लगन की बदौलत चार बरस पहले शुरू हुई यह महत्वपूर्ण सांस्कृतिक यात्रा आज अपने 150 वें पड़ाव पर आ पहुंची है। संदीप सौरभ ने उनसे कई अनछुए पहलुओं पर बातचीत की।

सुरभि कैसे अस्तित्व में आई?

मैं बबई में टाटा की एक कंपनी में नौकरी करता था। शुरू से ही कुछ हटकर, रचनात्मक करने की चाह.. वहां मेरा दम घुटने लगा। मैंने नौकरी छोड़ दी। इसके बाद मैंने राजकपूर, एवरेस्ट हिंदुस्तानी संगीत, काश्मीरी लोकनृत्य आदि विषयों पर 50 के करीब 'डाक्यूमेंट्रीज' बनाई। इन फिल्मों के निर्माण के दौरान में देश-विदेश भूमा, जिंदगी को जाना। इसी दौरान दूरदर्शन ने मुझे एक सांस्कृतिक पत्रिका बनाने का आमंत्रण दिया। मैंने 'सुरभि' का प्रस्ताव रखा जो स्वीकार कर लिया गया। यों भी 'सुरभि' तो मेरे लिए मेरी अपनी खोज यात्रा है।

कला-संस्कृति जैसे विषयों में आम आदमी जरा कम ही रुचि लेता है, ऐसे में आप इससे जुड़ने का खतरा उठाने के लिए कैसे तैयार हो गए?

देखिए, हमारे लिए तो यह एक आदर्श स्थिति थी। सुरभि दूरदर्शन का एक कमीशंड प्रोग्राम था और इसमें सारा पैसा उसी का खर्च होता था। हमें तो एक साल तक पता ही नहीं था कि इसकी व्यूअरशिप कितनी है या 'एड एजेंसी' क्या होती है।

लेकिन यदि कोई कार्यक्रम असफल होता है तो इसका नुकसान उसको भी होता है जो उसे बनाता या पेश करता है?

सुरभि बनाने से पहले मैं बंबई दूरदर्शन पर अंग्रेजी में समाचार पढ़ता था। तब टी.वी. पर सीरियल वगैरह तो

होते नहीं थे। फिल्मी दुनिया के सितारों के मुकाबले टी.वी. की ओर से 'न्यूज रीडर' ही थे, जिनके लिए 'पब्लिक' में क्रेज होता था। मुझे भी लोगों ने अपना लिया। सो मुझे अस्वीकृति का भय यहां भी नहीं था। फिर 'सुरभि' से मुझे अपनी नैसर्गिक प्रतिभा दिखाने का अवसर मिल रहा था।

सुरभि के निर्माण के दौरान का कोई यादगार अनुभव बताइए?

हम लक्षद्वीप गए हुए थे। वहां हमने सोचा कि समुद्री इलाका है, काफी बढ़िया मछली, झींगा वगैरह खाने को मिलेंगी। वहां जिस 'गेस्ट हाउस' में हम ठहरे थे, पहुंचने में काफी रात हो गई। हम बहुत भूखे थे। कहा कि भइया, बड़ी भूख लग रही है। कुछ 'स्नैक्स' वगैरह मंगा दीजिए! वह बोला कि आप किस दुनिया में रहते हैं? यहां न कोई होटल है, न दुकान, न थिएटर। कुछ खाने को लेना हो तो दूसरों के घर से ही लाना पड़ता है। यहां हमें पता लगा कि दुनिया में ऐसी भी जगह हैं। यहां पंद्रह दिन में एक बार बोट आती हैं, जितना चाहिए एक ही बार में ले लो। उस रात हम भूखे ही सोये ।

बहुत-सी चीजें ऐसी भी होंगी, जिन्हें आपने सुरभि में शामिल करना चाहा हो, मगर कर न पाए हों?

हां, बहुत-सी ऐसी चीजें हैं, बहुत से ऐसे शख्स हैं जो कैमरे के सामने नहीं आना चाहते। मणिरत्नम जी को अपने कार्यक्रम में शामिल करना चाहते थे। बहुत कोशिश की पर वे तैयार ही नहीं हुए। कहते हैं कि 'साहब, अगर हम आपके कैमरे के सामने आ जाएं तो हमारी तो सारी प्राइवेट लाइफ ही खत्म हो जाएगी, लोग हमें पहचानेंगे, तो मार ही डालेंगे। हमें कैमरे के पीछे ही रहने दीजिए।''

हमें इसका भी अफसोस होता है कि इतनी जगह हैं। इतनी चीजें हैं। जिन्हें कवर नहीं कर पाये। बिहार के आदिवासी इलाकों में जाना चाहते हैं, पर वहां कोई ठीक से गाइड करने वाला तो हो। बस्तर में काफी समय से जाना चाहते थे, अब अनुमति मिली है। इसीलिए हमने सुरभि में 'नुमाइश' खंड शुरू किया है जिसमें कोई भी, कहीं से भी इस तरह की चीजें वी. एच. एस. पर भेज सकता है। हम उसे सुरभि में लेंगे।

सुरभि का आप खुद कैसा मूल्यांकन करते हैं? कह सकते हैं कि सुरभि में सुगंध तो है ही नहीं, पर हमें यह संतोष है कि इसमें दुर्गंध भी नहीं है। अभी ऐसे कई कार्यक्रमों की जरूरत है जिनमें लोगों को मनोरंजन, सूचना मिले, अपने जीवन को संवारने का रास्ता मिले। सुरभि तो इस दिशा में एक छोटी-सी पहल है।

सुरभि से अलग आपकी अपने लिए क्या योजनाएं हैं? अगर सुरभि बंद हो गया तो मैं थोड़े बहुत कार्यक्रम बनाऊंगा, पर मैं इंतजार कर रहा हू कि मेरा उपन्यास कब पूरा होता है। कुछ अध्याय तो लिख लिए हैं। इसके अलावा कुछ खास नहीं।

'नवभारत टाइम्स', नई दिल्ली

अस्वीकरण :

उपरोक्त लेख में व्यक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं और kashmiribhatta.in उपरोक्त लेख में व्यक्त विचारों के लिए किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। लेख इसके संबंधित स्वामी या स्वामियों का है और यह साइट इस पर किसी अधिकार का दावा नहीं करती है।कॉपीराइट अधिनियम 1976 की धारा 107 के तहत कॉपीराइट अस्वीकरणए आलोचनाए टिप्पणीए समाचार रिपोर्टिंग, शिक्षण, छात्रवृत्ति, शिक्षा और अनुसंधान जैसे उद्देश्यों के लिए "उचित उपयोग" किया जा सकता है। उचित उपयोग कॉपीराइट क़ानून द्वारा अनुमत उपयोग है जो अन्यथा उल्लंघनकारी हो सकता है।

साभार:- अप्रैल-मई 1995 कोशुर समाचार