अरुण कौल और 'कश्मीर फाइल'
सुनील मिश्र - 'नई दुनिया' - इंदौर
महसूस की जाने वाली ज़रूरत को पूरा कर रहा है
इन दिनों अरुण कौल सम-सामयिक विषय पर एक महत्वपूर्ण धारावाहिक बनाकर यकायक फिर चर्चा में आए हैं। इस धारावाहिक का नाम है काश्मीर फाइल। दूरदर्शन के मुख्य चैनल पर प्रति शनिवार को सुबह आठ बजकर चालीस मिनट पर दिखाया जाने वाले आधे घंटे का यह धारावाहिक पहली दो किस्तों तक तो साप्ताहिक रहा फिर बाद में तीसरी किस्त में दूरदर्शन ने इसे पाक्षिक कर दिया है। नाम से ही साबित होता है, यह धारावाहिक कश्मीर पर है।। इसमें फोकस किया गया है वहां की संस्कृति, परंपराओं, समाज और संस्कारों को जिनका गौरव भारत में अनूठा है। इस धारावाहिक में काश्मीर को वर्तमान परिस्थितियों के मद्देनजर भी देखा गया है।
अरुण कौल अपने नजरिए के निर्देशक हैं। सर्जनात्मकता उनका गुण है। फिल्म सोसायटी एवं नया सिनेमा से जुड़े अरुण कौल ने मृणाल सेन और गुलजार जैसे निर्देशकों का दीर्घकालिक सान्निध्य प्राप्त किया है। वे अनेक प्रोजेक्ट के निर्माता, सह-निर्माता और लेखन से जुड़े रहे हैं जिनमें अनेक अहम् फिल्में शामिल हैं। आज से लगभग पांच वर्ष पहले अरुण कौल ने राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम और दूरदर्शन के लिए बतौर निर्देशक हिंदी फिल्म "दीक्षा" बनाई जिसे भारत सहित दक्षिण एशियाई देशों तथा विश्व के और दूसरे देशों में प्रशंसा प्राप्त हुई।
"दीक्षा" का निर्देशन अरुण कौल के पहले स्वतंत्र बड़े काम और उस काम की बहुधा सराहना का प्रमाण था। यह एक कालखंड विशेष की फिल्म थी जिसके कुशल निर्देशन से संवेदनशीलतापरक इन्वाल्वमेंट की दरकार थी जिसको अरुण कौल ने पूरा किया। लोगों ने निर्देशक के दृष्टिकोण की सराहना की और समीक्षकों ने उनको महत्वपूर्ण निर्देशकों की जमात में शामिल कर उनको अहम् निर्देशक का दर्जा दिया।
इस फिल्म के निर्माण के बाद अरुण कौल विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा की धारावाहिक टेलीविजन पत्रिका 'टर्निंग प्वाइट' से जुड़ गए जिसे उन्होंने अपनी प्रोडक्शन संस्था अरुण कौल प्रोडक्शंस के बैनर पर बनाया। इस पत्रिका में उन्होंने सभ्यता, आविष्कार और शोध की नई कार्य प्रणालियों और संदर्भों को शामिल किया। इस ज्ञानवर्धक पत्रिका को छोटे परदे पर बड़ी प्रशंसा मिली और दूरदर्शन ने इसकी निरंतरता बनाए रखने का विचार किया। इस टिप्पणी के लेखक ने इस पत्रिका की दो किस्तों, जिनमें मंडला (मध्यप्रदेश) के फासिल्स पार्क एवं मध्यप्रदेश की प्रेरित शिल्प परंपरा पर फोकस किया गया था, में बतौर सहयोगी कार्य किया था।
'काश्मीर फाइल' का निर्माण अरुण कौल के लिए जैसे एक भावनात्मक उपक्रम के रूप में अंतर्मन की प्रेरणा से उपजकर निश्चय के रूप में सामने आया, वह स्वयं काश्मीर के हैं। वर्तमान परिस्थितियों के मद्देनजर उनकी सर्जनात्मकता में कहीं न कहीं यह बात प्रेरित करती थी कि कोई रचनात्मक पहल की जाए। 'काश्मीर फाइल' इसी सोच का नतीजा है। तीसरी कड़ी में छोटी-छोटी कथाओं में बर्फ, जम्मू शहर, काश्मीर के टेराकोटा पर अलग-अलग प्रस्तुतियां हैं। इसी कड़ी में राजनीतिज्ञों और बुद्धिजीवियों से बातचीत की श्रृंखला में पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री एवं जनता दल के वरिष्ठ नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद से बातचीत की गई है।
इससे पहले की कड़ियों में उन्होंने डल झील, वितस्ता नदी के साथ-साथ वानस्पतिक संपदा, पर्यावरण, मौसम को भी रेखांकित किया था। इन्हीं कड़ियों में जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री एवं नेशनल कांफ्रेंस के नेता डा. फारूख अब्दुल्लाह, केंद्रीय विदेश राज्यमंत्री सलमान खुर्शीद और केंद्रीय पर्यटन मंत्री गुलाम नबी आजाद से भी बातचीत की थी।
सुनील मिश्र - ('नई दुनिया' - इंदौर)
अस्वीकरण :
उपरोक्त लेख में व्यक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं और kashmiribhatta.in उपरोक्त लेख में व्यक्त विचारों के लिए किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है। लेख इसके संबंधित स्वामी या स्वामियों का है और यह साइट इस पर किसी अधिकार का दावा नहीं करती है।कॉपीराइट अधिनियम 1976 की धारा 107 के तहत कॉपीराइट अस्वीकरणए आलोचनाए टिप्पणीए समाचार रिपोर्टिंग, शिक्षण, छात्रवृत्ति, शिक्षा और अनुसंधान जैसे उद्देश्यों के लिए "उचित उपयोग" किया जा सकता है। उचित उपयोग कॉपीराइट क़ानून द्वारा अनुमत उपयोग है जो अन्यथा उल्लंघनकारी हो सकता है।
साभार:- अरुण कौल एंव अप्रैल-मई 1995 कोशुर समाचार