​​​​​​​कुछ यादें

​​​​​​​कुछ यादें


कुछ यादें

कनीशा रैना

आज भी याद आती है।

उन बर्फ से ढकी पहाड़ियों की,

उन हरे-भरे वनों की,

उन झरनों के बहते ठंडे पानी की,

उन चेहरों की मीठी मुस्कानों की,

उन किश्तियों की, जिन पर बैठकर, मैं

अपने आपको प्रकृति का एक अंश मानती थी,

उन फूलों के बगीचों की

कहां गई वो चीजें ?

क्या छिप गई उन आतंकवादियों के डर से,

जो सिर्फ तबाही मचाकर

हथियाना चाहते सब कुछ

क्या अब मैं अपने कश्मीर को

कभी देख भी पाऊंगी?

या सिर्फ रह जाएंगी मेरे पास

उस स्वर्ग की केवल कुछ यादें ?

 

कनीशा रैना, सातवीं कक्षा डी-32, पंपोश एनक्लेव, नई दिल्ली-48

अस्वीकरण:

उपरोक्त लेख में व्यक्त विचार अभिजीत चक्रवर्ती के व्यक्तिगत विचार हैं और कश्मीरीभट्टा .इन उपरोक्त लेख में व्यक्तविचारों के लिए जिम्मेदार नहीं है।

साभार:- कनीशा रैना    एंव अप्रैल-मई 1995 कोशुर समाचार