अहो सुन्दरमुद्यान,
'कश्मीर शतकम्
अहो सुन्दरमुद्यान,
कुङ्कुमपुष्प वासितम्।
वसतर्ती कथ नष्ट,
झावातेन सांप्रतम् ।।
कीदृशी वाटिका रम्या
पुष्पमालाविभूषिता।।
अनभ्रवज्रपातेन
शोभा ह्यस्या अपाकृता ।।
केसर कुसुमों से सुवासित,
कैसा था यह सुन्दर उद्यान ।
उजड़ा वह वसंत में तत्क्षण
कैसा था आंधी तूफान
पुष्प मालाओं से विभूषित
कैसी थी यह सुन्दर बारी।
अनभ्रवज्रपात से तत्क्षण,
सुषमा नष्ट हो गई सारी।।
('कश्मीर शतकम्' से)