दो लघु कविताएं - प्रगति

दो लघु कविताएं - प्रगति


 दो लघु कविताएं - प्रगति

बलजीत सिंह रैना

 

मैं मुखातिब हूं तुम्हें

ओ दुनिया के पहले कवि !

जब कभी पहली कविता तूने लिखी होगी

तूने सपने में भी यह कब सोचा होगा

कि खुश्बू-सी कविता से

मुर्दार की बू आएगी!

कविता की जुबान पर

बारूद का जिक्र आएगा !!

नफरत की आग में

फूल कविता का झुलस जाएगा !!!

और कविता की मुट्ठी में से

कविता रेत-सी निकल जाएगी !!!!

ओ दुनिया के पहले कवि !

मैं मुखातिब हूं तुझे

आज दावे संग मैं कह सकता हूं

एटम-बंब बना पुरखों ने

इतना सुख न पाया होगा

जितना दुःखी मेरा बच्चा है।

इतिहास जान कर 'हिरोशिमा' का!

इसीलिए मुखातिब हूं तुमसे

ओ दुनिया के पहले कवि !

 

जब कभी पहली कविता तूने लिखी होगी

तूने सपने में भी यह सब कब सोचा होगा!....

अस्वीकरण:

उपरोक्त लेख में व्यक्त विचार अभिजीत चक्रवर्ती के व्यक्तिगत विचार हैं और कश्मीरीभट्टा .इन उपरोक्त लेख में व्यक्तविचारों के लिए जिम्मेदार नहीं है।

साभार:- बलजीत सिंह रैना एंव अप्रैल-मई 1995 कोशुर समाचार