चिंतिकाएं
पृथ्वीनाथ 'पुष्प'
अंग अटूट है भारत का
कश्मीर हमारा ! है न?
खिचा खिचा है।
भिचा भिचा है
पुटा बुटा है
जी, होगा इससे क्या !
है तो भारत का !
मानचित्र पर मान हमारा
रंगरूप से रूपरंग से
भारत का ! है न?
डोडे के फोड़े
ऊपर ऊपर ही चमड़ी के
अभी तो है बिफरे
पोर पोर में उतर रहे ये
नासूरी जंजाल बिछाते
अपनी गहरी जड़ें जमाते
कर पाओगे कभी सफाया
इनका ?
आज नहीं तो कब?
अस्वीकरण:
उपरोक्त लेख में व्यक्त विचार अभिजीत चक्रवर्ती के व्यक्तिगत विचार हैं और कश्मीरीभट्टा .इन उपरोक्त लेख में व्यक्तविचारों के लिए जिम्मेदार नहीं है।
साभार:- पृथ्वीनाथ 'पुष्प' एंव अप्रैल-मई 1995 कोशुर समाचार