इंतजार है
संतोष अलेक्स
कश्मीरी पंडित, अब कश्मीर में नहीं रहते
वे मिल जाएँगे दिल्ली
इलाहाबाद या गाजियाबाद में
इनकी संपत्ति हड़प ली गई
पुरूषों की हत्या हुई
स्त्रियों का बलात्कार
जो बचे थे उन्हें कश्मीर छोड़ना पड़ा
घाटी में उनके घर की चिमनियों से
धुआ उडता था
बच्चे घूमा-फिरा करते थे
उड़ रहा है घुआ अब बारूद का
घूम रहे हैं आतंकवादी
धूम रही है टुकड़ी सेना की
डल झील
चिनार के पेड़ घाटी सब चुप हैं
चुप है हवाए-दिशाएं
बेघर हैं वे दशकों से
अब न पन ध्युन' ही मनाया जाता है।
न हेरथ ही उस तरह
इतजार है नवरेह पर्व पर
कश्मीर लौटने का
फिर बनेगी नेनी कलिया
दम आलू, मुजि पेटिन
और खीर
जब वे लौटेंगे एक दिन
अपने चिनारों के नीचे
होगी राहत महसूस
कि अब न होगा आठवा विस्थापन ।।
अस्वीकरण:
उपरोक्त लेख में व्यक्त विचार अभिजीत चक्रवर्ती के व्यक्तिगत विचार हैं और कश्मीरीभट्टा .इन उपरोक्त लेख में व्यक्तविचारों के लिए जिम्मेदार नहीं है।
साभार:- संतोष अलेक्स एंव 2012 अप्रैल, काशुर समाचार,