निक्षेप - प्रकरण 4

निक्षेप - प्रकरण 4


निक्षेप - प्रकरण 4

पृथ्वीनाथ मधुप

(शिशु गुष्य को देख निपूती सुध्या का मातृत्व जाग पड़ा। शिशु को गोदी में लिया। चूमा, प्यार किया और अपनी कुटिया ले गई। थाना पोसा बड़ा किया तथा अच्छे से अच्छे गुरुओं से विद्या दिलवाई। सुन्य भी अत्यंत प्रतिभाशाली निकला और हर विद्या में अल्प समय में ही (पारंगत गया। युवावस्था में आकर एक गृहस्थ के बच्चों को पढ़ाने लगा। बाढ़ प्रकोप के दौरान जब विद्वान व नियंत्रण पर गोि करते या जनता बाढ़ नियंत्रण की चर्चा करती तो सुख्य श्रीनगर के राजपथों पर कहता किस्ता कि मेरे पास बुद्धि है, पर साधनहीन हूँ, क्या कर महाराज अवंति वर्मा को इस युवक के बारे में गुप्तचरों से पता चाना। इसे बुलवाया। बाढ़ नियंत्रण योजना पर चर्चा हुई। इस योजना को महाराज की स्वीकृति मिल गई। युवक ने रखी कि योजना तभी कार्यान्वित होगी जब कोई, यहां तक कि स्वयं महाराज भी, मेरे कामों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। उसके बाद क्या हुआ? पढ़िए ]

 

दे देंगे उतना धन

जब-जब जितना भी मागू

 

यह मेरा है वचन

कि वश कर दूंगा

नदियों को ऐसे

एक ही झटके से लगा के

अश्वरोही कुशल

वश कर लेता

अडियल बिगड़े घोड़े जैसे

 

'साधुवाद सुधी युवक

ऐसा ही होगा

कोषपाल को बुलवा कर

हू आज्ञा देता'

 

मटमैली औ' फेन उगलती

अति विशाल उस महाराशि की

लहरों के अति कठोर

आघात झेलती/डगमग होती

ऊपर चढ़ती / नीचे आती

नौका इक आई उस थल तक

जहां सुय्य थे खड़े

बहुत बड़ी धनराशि लिए

कबसे/ उसकी बाट जोहते

 

पहले/धन से भरे पात्र सब

उचित जगह पर / रखवा

स्वयं नाव में उतरे

दे निर्देश नाविकों को सब

विदा किया/ साथ आए जो

राजपुरुष थे

 

कुशल नाविकों से संचालित

नौका / जूझ जूझ कर

बना-बना पथ/नग सदृश्य लहरों के ऊपर

बढ़ती गई/नगर के दक्षिण ओर

मंथर-मंथर/संभल-संभल कर

ज्यों बाधाएं लांघ लांघ कर

आगे ही आगे बढ़ता हो/लगातार

फौलादी निश्चय

 

मड़व राज्य के नन्दन में

जब पहुंची नौका

एक पात्र/ जो मरा लबालब

सोने की मुद्राओं से था

उठा स्वकर में/पानी में

मुख्य ने डाला

 

कहा नाविकों से

अब नौका/क्रमराज्य में

खे ले जाओ

ध्यान रहे पर पूरा-पूरा

उत्तर ओर हमें है जाना-

अपने प्यारे श्रीनगर के

 

संघर्षो से घर्षित जीवन

द्युतिमय बनता

सहकर के आघात सभी

मल सब है खोता

ऐसे ही यह नाव

तरघातों को सहते

पहुंच गई उस ठौर

जिसे / यक्षदर कहते

 

बार-बार / अंजलि में अपनी

मुद्राएं भर कर गए डालते

बारि बीच मुख्य / विहस विहस कर

 

रहा देखता / आंखें फाड़े

मंत्र मुग्ध-सा/रह-रह कर

यह दृश्य अनोखा / चालक दल

तरिणी का

 

उत्क्षेप

(प्रकरण : 5 )

 

जल में कहां-कहां प्रक्षेपित

धन कर डाला पात्र सहित

या अंजलि भर-भर

मूर्ख युवक ने

सुना नाविकों से सब ब्योरा

सभासदों ने/अन्यों ने भी-

आसपास जो खड़े हुए थे

गए सभासद राजभवन

भूपति से मिलने

कहा कि- स्वामी-

बुद्धि सुय्य की देख लीजिए

सारा धन / जो-

कोषपाल ने उसे दिया था

प्लव को अपने हाथों

अर्पित कर आया है/ उन्मन

 

हम तो पहले ही कहते थे

नीच कुलोद्भव

चाण्डाली का पुत्र

सुय्य/महापागल है।

सनकी मंदबुद्धि/वातुल है

और कुपोषित अस्थिशेष

अप्रिय अस्थिर है

 

राजा ने / आशय अविलम्ब

रहा शब्दों का बोले हंसी दबा-

आप सभी का आभारी हूं

देखूंगा धन नहीं बहाया जाए

ऐसे / आप सुधी जन

गेहों में जा

विश्राम कीजिए

 

उधर/अकाल पीड़ा से पीड़ित

ग्रामजनों में फैली खबर

धन अपार है/ जल के अन्दर

दौड़े वे/ पर पहुंच ठौर पर

खड़े रह गए/मंत्र कीलित-से

सूनी आंखों/एक दूसरे को ही तकते

 

सबको भय ने घेरा था/ अंदर ही अंदर:

यही महादानव रहता है/जल दे अंदर

खाता है वह/मांस मनुष्य का बड़े चाव से

जल में डुबकी तो मारें/ पर कैसे...?

(जारी)

अस्वीकरण:

उपरोक्त लेख में व्यक्त विचार अभिजीत चक्रवर्ती के व्यक्तिगत विचार हैं और कश्मीरीभट्टा .इन उपरोक्त लेख में व्यक्तविचारों के लिए जिम्मेदार नहीं है।

साभार:- Prithvi Nath Madhup पृथ्वीनाथ मधु एंव 1996 नवम्बर कोशुर समाचार