सुनियोजित दुष्प्रचार

सुनियोजित दुष्प्रचार


सुनियोजित दुष्प्रचार

मोतीलाल बंगरू

एक नामधारी तथाकथित धर्म-निरपेक्ष नेता तपाक से बोले-

'देशवासियो, धर्म को राजनीति से भिन्न रखो,

तुम तो जानते ही हो कि धर्म और राजनीति,

यद्यपि यह सत्य है कि हमारी आशाओं-आस्थाओं एवं-

एक ही थाली का दाल-भात नहीं है।

हमारे कर्मक्षेत्र, धर्मक्षेत्र, अर्थक्षेत्र की

थाली एक है।' मुझसे रहा न गया,

तुरन्त बोल उठा-

"नेताजी यह तो बताइए कि वह थाली कहां है?

जिसमें धर्म और राजनीति संग-संग पलती तो है

पर नेताओं की लचीली-सजीली शब्दावली में

भिन्न-भिन्न शब्दजाल बुनती है।"

धर्मनीति, अर्थनीति, राजनीति के प्रश्न शुरू हैं,

सामान्य जन क्या जानें? वे बोले,

मैंने कहा- "जिस प्रेशर कुकर में

हमारी अर्थनीति, राजनीति, धर्मनीति पकती है,

वह प्रेशर कुकर किस मेटल से बनता है?

क्या वह 'मेटल' अमरीका अथवा ब्रिटेन

से सप्लाई किया जाता है

किस विदेशी कल से बल के साथ निकलता है-

धर्म और राजनीति का पकवान,

अर्थनीति का स्वादिष्ट पकवान,

कहा जाता है कि हमारा अर्थ तंत्र

विदेशी पटल पर निर्मित होता है

'गैट' में सम्मिलित होने का बैट

विदेशी राजनीति के कारखाने में निर्मित होता है,

और-

हमारे राष्ट्र को गौरवान्वित करता है

प्रापोगंडा का माध्यम, आकाशवाणी

नकरात्मक समाचार-पत्र।

नेताजी क्रुद्ध तो हुए-

पर सत्य अधरों की हास्य-रेखा

बनकर प्रकट हुआ ही,

सुनो सज्जन, हम क्या मूर्ख थे कि

दूरदर्शन अकाशवाणी को आटोनामस

संस्थाएं घोषित नहीं किया,

नहीं तो इतना छीला छीला, गीला-गीला,

सत्य कैसे बोल पाते

हम सतत सावधान हैं कि-

धर्म और राजनीति का मिलन न हो,

मैंने कहा-'नेताजी, धर्म ने आपका

क्या बिगाड़ा?

यह तो शाश्वत है, चिरन्तन है, सर्वोपयोगी सत्य है,

फिर धर्म और राजनीति पर इतना आक्षेप क्यों ?

नेताजी ने उत्तर दिया-

'क्या कहते हो? बरखुरदार,

यदि धर्म से राजनीति घुल-मिल न जाती,

तो क्या बाबरी मस्जिद गिरती ?'

मैं उत्तेजित हो उठा-महाशय, इसके लिए

धर्म को क्यों दोषी ठहराया जाए?

इसके लिए तो हमारे नेता गण दोषी हैं

और फिर आपकी सरकार भी, आंशिक रूप से दोषी है,

मस्जिद मिलने की सूचना तो सरकार को

इसके गिरने के उपरांत 20 मिनट के पश्चात मिली थी.

नेताजी, इस विषय में आपके क्या विचार हैं?

"यह तो तो मात्र कम्यूनिकेशन गैप है"

वे बोले-

मैंने कहा- "यदि इस प्रकार के गैप

अस्तित्व में आते रहे तो देश का

'मैप' अपमानित होगा।

नेताजी रोष की मुद्रा में बोले-

"तुम कदाचित विरोधियों की भाषा बोल रहे हो,

मेरा तो एक ही मत है कि धर्म और राजनीति को

एक कटघरे में खड़ा न करो। "

मैंने भी विह्वल होकर कहा-

" आपने कदाचित कश्मीरी मुहावरा नहीं सुना है कि

मुर्गे की एक ही टांग है।"

" धर्म हमारी पैतृक सम्पत्ति है, वह दूषित नहीं है,

दूषित है तो इसका दुरुपयोग,

राजनीति की अपनी गरिमा है,

'बापू' ने इसका परमाधार पावनता को स्वीकारा है,

नेताजी कुछ निरुत्तर से हुए-

पर, अपने को वश में न रख सके-

पुनः भाषण को मुद्रा में बोल उठे-

धर्म और राजनीति भिन्न-भिन्न है

मैं भी कितना तर्क-वितर्क करता?

लेखकों तथा नेताओं की विचार परिधि में भिन्नता जो है,

यह हमारे नेताओं का तकिया कलाम है,

मैं अपनी धुन में लीन सोचता रहा

कब तक जनमानस को इस दुरभिसन्धि में उलझाया जाएगा

कब तक यह तकिया कलाम

राजनैतिक दुर्घटनाओं को जन्म देगा,

जनता को विचार-मंथन करना ही होगा,

लड़ना ही होगा, इस सुनियोजित दुष्प्रचार से - जानीपुर (जम्मू)

अस्वीकरण:

उपरोक्त लेख में व्यक्त विचार अभिजीत चक्रवर्ती के व्यक्तिगत विचार हैं और कश्मीरीभट्टा .इन उपरोक्त लेख में व्यक्तविचारों के लिए जिम्मेदार नहीं है।

साभार:-  Moti Lal Bangroo मोतीलाल बंगरू एंव 1996 नवम्बर कोशुर समाचार