हाय नूरे नजर

हाय नूरे नजर


हाय नूरे नजर!

हृदयनाथ कौल रिंद

रश्के फिरदोस मेरे वतन, लग गई तुझ को किसकी नज़र  

पड़ गई सर्द हरियालियां फूल कुम्हला गए शाख पर

तेरे बागों से रूठी बहार, डाल बैठी है डेरा खिजां

फोको फोको हैं रंगोनियां, सूखे सूखे हैं शाख- राजर

उड़ गई गुलसितां से महक, बुलबुलें भूल बैठीं चहक

नोच डाले हैं गुलचों ने फूल और सैयाद ने बाल पेपर

अब ने मेवों में तेरे मिठास और न आते हैं दाने ही रास

रस वह सारे हैं तुर्श ने तलख जिनके आगे थी फीकी शकर।

अब कहां वह हवा मस्तॅदिल डालती थी जो मुर्दों में जान

हर तरफ है धुआं ही धुआं एक घना दम घुटाता कुहर ।

अब न सैयाह हैं न चहल न वोह मेले न वोह रोनकें

झील अफसुरद: है सोगवार हैं शिकारे मलाह खाकसर ।

तेरे बागों में बम उग रहे और खेतों में फसले बलम

बर्क रक्सा है हर गांव में, सोख्त है तेरा हर शहर।

खून उगलते हैं चश्मे तेरे, झील लाशें बजाए कमल

जिनमें अमृत खां था कभी है उन नालों का पानी जहर।

कोहसारों की बारूद से कोख भरदी व शोले भरे

बर्फज़ारों की आगोश में, वादियों में सिलाहेदिगर।

अब न हैं वो खादरियां, यारियां गहरी दोस्तदारियां

एक दूजे पर मरते थे जो लड़के जाते हैं आपस में मर।

हिजरते तायराने वतन जुल्मो-दहशत से डर अब कर।

कौम ऐसी हुई मुनतशिर मां कहां बाप बेटा किधर

भूल बैठे हैं बादक गां खुल के हंसना, खरा बोलना

लोग करते हैं सरगोशियां, इस कदर दिल में बैठा है डर।

जिनमें होते थे नग्मे खां है उन गलियों में नाले बुलंद

सिस्कियां आ रही हैं घरों में हंसी जिनमें थी मोउतवर।

तेरे जायों के वशियानापन से हैं सहमे हुए जानवर

इस कदर कर रहा होलनाक आदमी आदमी का हश्र ।

जिनको तूने पिलाया किया अपनी छाती का अमृत सा दूध

ले गई उनकी गारतगरी तेरी रानाइयां लूट कर ।

नाकस इस दर्जा माहोल है रात की छोड़ दिन दिन में भी

आए परछाइयों से हिरास, आए साए से अपने ही डर ।

मोत मंडला रही हर तरफ अब तो बिल्कुल भरोसा नहीं

सुबह का कर घर से निकला हुआ जिंदा लोटेगा भी शब बशर ।

जिसको देखो परेशान है। गम खर्दा, गिरयान है

बेटी अगवा है या बाप गुम या कहीं मुर्दा लख्ते जिगर ।

शंख खामोश है और अजां मुञजन की है सहमी हुई देर

मिस्सार हैं और हरम आततायों की साजिश के घर ।

मैकदे कब से वीरान हैं, कहवाखाने कुफुल देर से

रिंद फिरते हैं तशना दहन, जान जाहिद की लबों पर।

इस क़दर हैं हिरासां की बस धुन रहे हैं शबो-रोज़सर

दिन-ब-दिन तेरी हालत बिगड़ती हुई देखकर चार: गर।

यह न सोचा था इतना बुरा होगा अंजाम हरकात का

कि रहे न दवा में शफ़ा, कि रहे न दुआ में असर ।

खल्क बीती तुम्हारे यहां की है इक दास्ताने दराज़

मुख्तसर यह कि दुशवार है वहश ने तीरे बशर की गुज़र ।

ज़र्द चेहरा है आंखें धंसी, जिस्म लागर, अजू लक़व:जन

हाय नूरे नजर तुझ पे किस मूई ड्रायन ने फेंका सिहर ।

बड़ोदा-390008

अस्वीकरण:

उपरोक्त लेख में व्यक्त विचार अभिजीत चक्रवर्ती के व्यक्तिगत विचार हैं और कश्मीरीभट्टा .इन उपरोक्त लेख में व्यक्तविचारों के लिए जिम्मेदार नहीं है।

साभार:- हृदयनाथ कौल 'रिद" एंव 1996 नवम्बर कोशुर समाचार