अपनी बात - प्रोफेसर पृथ्वीनाथ पुष्य

अपनी बात - प्रोफेसर पृथ्वीनाथ पुष्य


अपनी बात - प्रोफेसर पृथ्वीनाथ पुष्य

चमन लाल सप्रू  

प्रिय बन्धुओ

नमस्कार।

गता में आपने प्रोफेसर पृथ्वीनाथ पुष्य के निधन का समाचार पढ़ा होगा। निःसंदेह उनके देहांत से कश्मीर के सांस्कृतिक क्षेत्र में एक बहुत बड़े अभाव का अनुभव हो रहा है। प्रोफेसर पुष्प मूलतः संस्कृत भाषा एवं साहित्य के एक यशस्वी प्राध्यापक है। इसके साथ ही एक कुशल प्रशासक भी गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज पुछ के प्राचार्य के रूप में उनको उल्लेखनीय सेवाओं को सदैव याद किया जाता रहेगा। 1965 के भारत-पाक युद्ध में उन्होंने अपने छात्रों द्वारा सीमावर्ती पहाड़ी भागों को ठीक करने में स्वयं मार्गदर्शन करके भारतीय सैनिकों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर देश भक्ति का सबूत दिया। उन्होंने जम्मू-कश्मीर सरकार के शोध पुस्तकालय एवं पुरातत्व विभाग के निदेशक के रूप में भी अद्वितीय योगदान दिया है। कश्मीर के पुरातत्व, इतिहास, संस्कृति और भाषा-साहित्य के अग्रणी विद्वान के रूप में उनके शोध-पत्र एक अमूल्य खाना है।

जम्मू-कश्मीर की करना, संस्कृति और ही जुड़े रहकर प्री. पुष्प ने अनेक दुर्लभ साकार किया। अकादमी द्वारा प्रकाशित भी उनके योगदान को भुलाया नहीं जा स्थापना काल में भी उनका बहुमूल्य 1956 में राजभाषा आयोग के सदस्य आयोग के अध्यक्ष बालासाहिब खरे तथा 'नवीन', रामधारी सिंह 'दिनकर' एवं डॉ. 'भाषाओं को अकादमी के साथ आरम्भ से ग्रंथों के सम्पादन में अपनी विद्वता को कोषों के सलाहकार सम्पादक के रूप में सकता। आकाशवाणी के जम्मू केन्द्र के योगदान रहा।

के रूप में उनके योगदान का उल्लेख हजारी प्रसाद द्विवेदी, बालकृष्ण शर्मा सुनीति कुमार चटर्जी जैसे विद्वानों ने भी प्रो. पुष्प किया है।

1962 में आयोजित आल इंडिया सचिव के रूप में उनके योगदान को याद कश्मीर घाटी में राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रचार- ओरियंटल कान्फ्रेंस के संयोजक एवं क्षेत्रीय किया जाएगा। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व -प्रसार और विकास में भी उन्होंने बढ़- चढ़कर भाग लिया और कश्मीर से प्रकाशित तत्कालीन एक मात्र हिन्दी पत्रिका 'चन्द्रोदय' के प्रकाशन में उनकी सेवाओं को हिन्दी जगत कभी भी भुला नहीं सकता। विस्थापन के बाद दिल्ली में 'स्वदेशी शरणार्थी' के रूप में वे अपने लाखों विस्थापित बन्धुओं की भांति शारीरिक और मानसिक यातनाएं सहते हुए भी अपनी मातृभूमि से जुड़ी सांस्कृतिक परम्परा को अक्षुण्ण रखने के लिए सदैव तत्पर रहे। 'कोशुर समाचार' के जागरूक पाठक के रूप में प्रो. पुष्प की टिप्पणियां और मौलिक रचनाएं हमारी अमूल्य धरोहर रहेंगी। आइए उनके प्रकाशित और अप्रकाशित बहुमूल्य लेखों का संग्रह करके उन्हें प्रकाशित करने के लिए सक्रिय कदम उठाएं। यही उनकी स्मृति को सदैव ताजा रखने के साथ उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी

आपका

प्रोफेसर चमन लाल सप्रू

सम्पादक कोशुर समाचार 1996

अस्वीकरण :

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1996 नवम्बर कोशुर समाचार