कैलाश पति शंकर
प्रो वीर विश्वेश्वर
(उनके एक चित्र से प्रभावित भावोद्रेक)
गिरिगन के ऊंचे से ऊंचे
शिखर पर देखो, कौन है बैठा
अजर अमर जो अविनाशी है
इंद्रिय दमन कर मौन है बैठा
जिसकी पद रज को सुर गण भी
आदर से हैं शीष पे धरते।
अपनी एक मधुर मुस्कान से
भक्तों का जो दुःख हैं हरते
जिसकी छवि अति सुंदर अनुपम
वे कैलाश पति शंकर हैं ।
सुगठित काया, सुंदर मुखड़ा
जन जन मन आकर्षित करता
अनुपम रूप, श्याम वर्ण है
सबका मन हुलसित करता।
जिसके बाहुयुगल, कंठ से
सर्प हैं रहते क्रीड़ा करते
चारों ओर हैं जिनके फिरते
मृग गण पर किंचित न डरते।
जिनकी कोमल अरुण जटा में
गंगा मैया वास हैं करतीं
वे कैलाश पति शंकर हैं ।
जिनका नाम 'पुरारि' 'पिनाकिन'
डमरू त्रिशूल हैं अस्त्र जिसके
भंगरस है पान जिसका
दिक्-दिशाएं वस्त्र जिसके
सुरसरिता जूट जटा से
निकल कर कल-कल है बहती
हिमानी शिखर से, चंद्रोदय पर
शांति का संचार है करती।
सरिता, शशि, सुन्दर शुक गण
जिसके संग हैं अभिनव करते
उस अभिनय के नायक हैं जो
वे कैलाश पति शंकर हैं ।
(चंद्रोदय 1941, श्रीनगर से )
प्रो. वीर विश्वेश्वर
साभार:- प्रो.वीर विश्वेश्वर एवं मार्च 1996 कोशुर समाचार