एक चित्र 

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एक चित्र 

अर्जुन देव मजबूर

गली एक भटकती गाय सी,

मकान के द्वारे आ रुक गई है

छत का पंखा-काल-चक्र

घूम-घूम कर थम गया है

किसी रेगिस्तान की विचित्र चुप्पी

कमरे में आकर पसर गई है

कानों में घोटी, भयंकर चीखें,

घुसने में बल लगा रहे हैं

किन्तु मैं इन सबसे बेखबर

ज़ेहन के पर्दे पर

अपने सारे जीवन का चित्र,

उकेरते उकेरते उदास हो उठा हूं।

अस्वीकरण:

उपरोक्त लेख में व्यक्त विचार अभिजीत चक्रवर्ती के व्यक्तिगत विचार हैं और कश्मीरीभट्टा.इन उपरोक्त लेख में व्यक्त विचारों के लिए जिम्मेदार नहीं है।

साभार:     अर्जुन देव मजबूर मार्च 1996 कोशुर समाचार