नीलमत पुराण 19th Part  

नीलमत पुराण 19th Part  


 नीलमत पुराण 19th Part  

पृथ्वीनाथ भट्ट

धारावाहिक

अनुवादकः पृथ्वीनाथ भट्ट (उन्नीसवीं किस्त)

पूर्व से संबंधित- आवाज तथा मुखमुतिका जैसे त्यौहारों के मनाये जाने के विषय में आप पहले ही ज्ञान प्राप्त कर चुके हैं। राजा निकुम्भ के अपने अनुयाई पिशाचों के छः मास तक कश्मीर में निवास करने के लिए आश्विन पूर्वमासी को प्रविष्ट होने पर अश्वायुजी मनाया जाता था। कार्तिक अमावस्या को घर-घर में, प्राङ्गण में, नदी किनारे, गोशाला, खेत खलिहान, शमशान पेड़ों के नीचे तथा मन्दिरों में दिए जलाए जाते थे इसे सुखसुप्तिका कहते थे आज इसे दीपावली कहते हैं।

देवात्थान अर्थात विष्णु को जगाने का उत्सव भी नाग बड़े धूमधाम से मनाते थे। भगवान विष्णु आषाढ़ मासे में सोते हैं चार मास तक सोए रहने के पश्चात उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष में पांच दिनों तक जगाने का उत्सव मनाया जाता है। उन दिनों नाग रात को जागते रहते थे, वे गाते थे, नगाडे, वीणा आदि बजाते थे, नावते थे, नाटक खेले जाते थे, इस तरह विष्णु को जगाया जाता था। विष्णु की मूर्ति को कार्तिक शुक्ल एकादशी को फलमूल, और अंगराज से पूजा जाता था। द्वादशी को मूर्ति को पंचगव्य, मधु, दही, मक्खन, तिल, अंगराग, उबटन, तथा अन्य सुगंधियों से नहाया जाता था। त्रयोदशी को धूप तथा सुगंधियां जलाई जाती थी, फूलों से पूजा की जाती थी। कलाकारों, कुश्ती लड़ने वालों, चारणों आदि को सम्मानित किया जाता था। उन्हें रुपये दिए जाते थे। चतुर्दशी और पूर्णमासी का उपवास रखा जाता था, विष्णु कार्तिकेय, खड्ग और वरुण को पूजा जाता था। कार्तिक में जो दिया एक मास तक घर में जलाए रखा जाता था, उसे नदी में अन्य दियों के साथ बहाया जाता था, प्रतिदिन ठण्डे जल से नहाया जाता था, पांच दिन तक एकादशी से पूर्णमासी तक वैष्णव भोजन करना पड़ता था । रेत की मछली बनाकर इस की आंखें रत्नों की बनाई जाती थीं, दूध से भरकर इसे ब्राह्मण को दानरूप में दिया जाता था। एक अच्छा बैल भी ब्राह्मण को दान में दिया जाता था।

यावन्ति रूमकूपानि तस्य दान्तस्य कश्यप ।

तावत् वर्षसहस्त्राणि स्वर्गे मोदन्ति तत्प्रदाः ।। 457

हे कश्यप की सन्तान, उस दान में दिए बैल के शरीर पर जितने वाल हैं उतने ही हजारों वर्षों तक दानी स्वर्ग में सहर्ष रहता है।

पूजयित्वा ततो विष्णुं रक्तमाल्यादिभिः स्वयम् ।

भोक्तव्यं गोरसप्रायं सुप्तव्यं चाप्यनन्तरम् ॥ 458

फिर विष्णु को लाल फूलों की मालाओं से पूजकर स्वयं दूध आदि पीकर सोना चाहिए।

देवात्थानमेतद्धि कर्तव्यं दिनपञ्चकम् ।

पञ्चाहमेतच्च तथा सुप्तव्यं स्थण्डिले बुधै ॥ 459

 

दिने दिने च स्नातव्यं नदी तोयं सुशीतले ।। 460

उस प्रकार देवता को जगाने की क्रिया पांच दिन तक करनी चाहिए। बुद्धिमान लोगों को पांचों दिन सन्यासी के समान नंगी भूमि पर सोना चाहिए। उसे हर दिन ठण्डे जल में नहाना चाहिए।

पूजनीयो हरिर्देवो ब्राह्मनः सहुताशनः ।

वर्जनीयं तदा मासं प्रयत्नादपि कश्यप ॥ 461

हे कश्यपपुत्र, हरि, ब्राह्मण और अग्नि की पूजा करनी चाहिए। बहुत प्रयत्न करके इन दिनों मांस खाना छोड़ना चाहिए।

नोट- इस से प्रमाणित होता है कि नाग जाति के लोग मांसाहारी, मछलीहारी थे।

दैत्यदानवयक्षाश्च पिशाचा सह राक्षसैः ।

वर्जयन्ति तदा मासं मांसादा दिनपञ्चकम् ॥ 462

मांसाहारी दैत्य, दानव, यक्ष, पिशाच और राक्षस भी इन पांच दिनों के दौरान मास खाना छोड़ देते थे।

नोट- राजा नील का आदेश था कि देवोत्थान के दौरान मांस बिल्कुल वर्जित था।

एवं सम्पूज्य देवेशं सर्वकामसमन्वितम् ।

आयुषः परमासाद्य विष्णुलोके महीयतै ॥ 463

इस प्रकार देवताओं के स्वामी केशव को पूजकर सारी इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। वह जीवन की अवधि को समाप्त कर विष्णु लोक में आदर पाता है।

स्ववित्तशक्त्या कर्त्तव्यं मयोक्तं ननमेवतु ।

प्राप्वोदीदं फलं सर्व वित्तशाठ्यं विवर्जयेत् ।। 464

मैंने इस उत्सव को मनाने के विषय में जो कुछ कहा, कम है। इसे अपनी शक्ति के अनुसार मनाना चाहिए। इस पूजा से सारा फल प्राप्त हो जाता है। धन के कार्य में धोखेबाजी नहीं करनी चाहिए।

कार्तिक्या समतीतायां सम्प्राप्ते प्रथमेऽहनि ।

कश्मीरा निर्मिता पूर्व कश्यपेन महात्मना। 465

तस्मान्तत्र दिने कार्यमुत्सवं सर्वमानवैः ।

स्वाशितै: स्वनुलिप्तांगैः सुचित्तैः सुजनावृतैः ॥ 466

महात्मा कश्यप ने कार्तिक मास की समाप्ति के बाद पहले दिन (मार्ग कृष्ण प्रतिपदा) कश्मीर निर्मित किया था। इसलिए सब लोगों को उस दिन उत्सव मनाना चाहिए। उन्हें अच्छा भोजन करना चाहिए। अपने शरीर पर उबटन लगाना चाहिए, अपना चित्त प्रसन्न रखना चाहिए और अच्छे लोगों की संगति में बैठना चाहिए।

नोट- मार्गशीष कृष्ण प्रतिपदा को कश्यप ने कश्मीर की नींव डाली थी। उसी दिन अनन्त ने पहाड़ काटा था, सतीसर का जाल बह निकला था, घाटी प्रकट हुई थी, मनुष्य जाति तथा पिशाच जाति के लोगों को बारी-बारी से छः-छः मास तक कश्मीर में निवास करने की स्वीकृति भी मिली थी।

श्रोतव्यं गीतवाद्यं च तथा सेव्यं च मंगलम्।

पानं च पानपै: पेयं वस्त्रं धारय तथा नवेम् ॥ 467

उस दिन गीत और वाद्य सुनना चाहिए तथा अच्छे पदार्थ खाने चाहिएं। सुरापान करने वालों को सुरापान करना चाहिए और नए वस्त्र धारण करने चाहिए।

तस्यातितोषमायाति सगणो भास्करः स्वयम् ॥ 468

एष एव विधिकार्यस्तया माघस्य सप्तमीम्।

आषाढ़ सप्तमीचैव यशोविजयकाङ्क्षिभिः ।। 469

गणों सहित सूर्य उन पर अति प्रसन्न होता है। यश और विजय की कामना करने वालों को यही विधि माघ की सप्तमी और आषाढ़ की सप्तमी को अपनानी चाहिए।

सप्तमीत्रितयं चैव ध्रुवमेतद् द्विनोसम

सप्तमीच्य सर्वास सूर्यलोके महीयते । 470

हे ब्राह्मणों में श्रेष्ठ (चन्द्र देव), तीनों सप्तमियां ही मनानी अनिवार्य हैं। इनके मनाने से (मणर्णोपरान्त) सूर्यलोक में आदर प्राप्त होता है।

पौर्णमासी तु तां प्राप्य मार्गशीर्षस्य मानवः ।

नक्ताशी पूजयेच्चन्द्र शुक्लमाल्यादिभिस्तया । 471

मार्गशीर्ष की पूर्णमासी को व्यक्ति को रात का ही भोजन करना चाहिए। उसे सफेद फूलों की मालाओं से चन्द्रमा को पूजना चाहिए।

अनैर्भश्यप्रकारैश्च दीपदानैस्तथा फलै।

लवणांनां प्रदानैश्च वह्निपूजाभिरेव च। 472

उसे चन्द्रमा का अनाज, प्रकार-प्रकार के भोजनों, दीप दानों, फलों, नमकदान और अग्निपूजन से पूजना चाहिए।

पूजनैः ब्राह्मणावां च सुभगानां तथैव च।

रक्तवस्त्रयुगं देवं सुभगा ब्राह्मणी तु या ॥ 473

उसे ब्राह्मणों और स्त्रियों को उसी तरह पूजना चाहिए। उसे ब्राह्मण की स्त्री को लाल कपड़ों का जोड़ा देना चाहिए। स्वसा पितु स्वसा या च मित्रपत्नीच या भवेत् ।

धामेषा तु कर्त्तव्या पौर्णमासी विचक्षणैः ॥ 474 अपनी बहन, पिता की बहन, मित्र की पत्नी को भी लाल कपड़ों का जोड़ा देना चाहिए। बुद्धिमान को अवश्य ही मार्गपूर्णिमा इसी तरह मनानी चाहिए।

कार्याश्चान्याः स्वशक्त्या वा न वा कार्या द्विजोत्तम्।

कान्तं रूपमवाप्नोति सौभाग्यं विपुलं स्त्रियः ॥ 475

 

स्त्रीभिर्विशेषतः कार्याः पौर्णमास्यस्तयां द्विजा ॥ 476

हे ब्राह्मणों में श्रेष्ठ, दूसरे कार्य यथा शक्ति मनाए जा सकते हैं या मनाएं भी नहीं जा सकते। इस प्रकार स्त्रियां सौंदर्य तथा सौभाग्य प्राप्त करती हैं। हे ब्राह्मण, स्त्रियों को पूर्णमासी विशेषकर मनानी चाहिए।

यस्मिंस्तु वासरे विप्र प्रथमं पतते हिमम् ।

तत्र पूज्यस्तु हिमवान् हेमन्त शिशि रावुभौ ।। 477

हे ब्राह्मण, जिस दिन वर्ष की पहली बर्फ गिरे, उस दिन हिमालय, हेमन्त और शिशिर ऋतुओं को पूजना चाहिए।

मम पूजा च कर्त्तव्या स्थाननागस्य चाप्यथ ।

फलपत्रे प्रदातव्ये नगे मेरुद्भवे तथा ॥ 478

मेरी तथा स्थानीय नाग की पूजा भी करनी चाहिए। मेरु पर्वत पर उगे फल और पत्ते हिमालय को अर्पित करने चाहिएं।

बकपुष्पाणि देयानि धूपं गुग्गुलुजं शुभम्।

बलिः कार्यः प्रयत्नेन कुल्माषेण द्विजात्तम् ॥ 479

हे श्रेष्ठ ब्राह्मण, मौलसिरी के फूल तथा गुग्गुल से बना धूप भी चढ़ाना चाहिए। प्रयत्न करके कुल्माष (एक प्रकार का अनाज) भी चढ़ाना चाहिए।

कुल्माषभोजनं देयं समृतं ब्राह्मणेषु च। उत्सव च तदा कार्य गीतनृत्तमसाकुलम् ।। 480 ब्राह्मणों को कुल्माष का भोजन घी सहित देना चाहिए। और नवहिमपात का उत्सव गीत और नाच से मनाना चाहिए।

नोट- नवहिमपात पर कश्मीर में बहुत चहल-पहल रहती है, शादियाने होते हैं। अच्छे व्यञ्जन बनते हैं, छोटे बड़े सब बर्फ से खेलते हैं। बर्फ की मूर्तियां जगह-जगह बनाई जाती हैं। उस दिन एक-दूसरे को बधाई दी जाती है। बर्फे नव उफताद-मुबारकबाद। नई वधुएं ससुराल वालों के लिए अच्छे पकवान लाती हैं। कश्मीर के सौंदर्य का रहस्य बर्फ में है।

विशेषवाच भोक्तव्यं भोजनं च यथेच्छकम्।

नवो मद्यस्तु पातव्यो मद्यपैः पतिते हिमे ॥ 481

नए बर्फ के गिरने पर अपनी इच्छा के अनुसार विशेष व्यञ्जनों का भोजन करना चाहिए, शराबियों को नई शराब पीनी चाहिए।

(शेष अगले अंकों में )

साभार:- पृथ्वीनाथ भट्ट एवं मार्च 1996 कोशुर समाचार