वन्दे मातरम्
प्रो कृष्णलाल भल्ला
जम्मू-कश्मीर राज्य के प्रतिष्ठित समाजसेवी प्रो. कृष्णलाल भल्ला को पुंछ निवासी महात्मा भल्ला के नाम से सम्बोधित करते हैं। पूर्व अंग्रेजी विभागाध्यक्ष एवं प्रिंसिपल प्रो. भल्ला जम्मू-कश्मीर राष्ट्र भाषा प्रचार समिति के अध्यक्ष रह चुके हैं। अंग्रेजी, हिन्दी और उर्दू में इनकी रचनाएं देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपती हैं। युवा पीढ़ी में अपनी रचनाओं में चरित्र निर्माण तथा राष्ट्रवादी विचारधारा पर विशेष रूप से बल देते हैं। इनकी धर्मपत्नी श्रीमती राज भल्ला जम्मू-कश्मीर की प्रतिष्ठित कहानीकार हैं।
लोकमान्य तिलक के अनुसार- 'मातृभूमि को पुनः उसके गौरवशाली स्थान पर प्रतिष्ठित करने का संकल्प हमारे हृदय में जागृत करने वाला भारतीय राष्ट्रीयता से संलग्न मंत्र है वन्दे मातरम्'।
'वन्दे मातरम्'-'मां को प्रणाम' यह हमारी संस्कृति की विशेषता है। विश्व में हमारा अस्तित्व मां के कारण है। उसे पूजा का स्थान देना हमारा कर्तव्य है। 1938 में कांटालपाडा (बंगाल) में श्री बंकिम चन्द्र का जन्म हुआ। 'आनन्द मठ' उनका प्रिय उपन्यास है। यह मां की आज़ादी की कथा है। 'वन्दे मातरम्' उनकी अमोल देन है।' आनन्द मठ' में संतानों का प्रेरणा स्वर 'वन्दे मातरम्' बना। गीत गाते हुए भवानंद भारत माता की आजादी के लिए कटिबद्ध सैनिक बना।
श्री अरविंद का 'भवानी मंदिर' इसी पर आधारित है। वे कहते थे कि बंकिम बाबू ने स्वदेश को माता की संज्ञा दी। उनकी दिव्यदृष्टि ध्यान में रखते हुए गुरुदत्त बनर्जी ने उन्हें 'ऋषि' की संज्ञा दी। यह गीत सबसे पहले श्री रविन्द्रनाथ ठाकुर ने 1896 में कांग्रेस के अधिवेशन में गाया। स्वाधीनता आंदोलन का संकेत शब्द यह 1905 में बना। इस का इतना प्रभाव हुआ कि भगिनी निवेदिता ने इसे अपने स्कूल में गाना प्रारंभ किया। इस चिनगारी से बंगाल, पंजाब, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और मद्रास सुलग उठा। मद्रास में चिंदबरम् पिल्लई, पंजाब में लाला लाजपत राय, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और अनेक क्रांतिकारी 'वन्दे मातरम्' गाते-गाते शहीद हुए।
महाराष्ट्र के नासिक शहर में अभिनव भारत के 11 सदस्यों को पकड़ा गया, वे भगवती मंदिर से 'वन्दे मातरम्' गाते हुए आ रहे थे। यह विजयदशमी का दिन था। पुलिस ने यह गीत सुना और 'वन्दे मातरम्' की अप्रतिष्ठा करने वाले गंदे शब्दों का प्रयोग किया। दोनों में हाथापाई हुई। पुलिस की पिटाई करके युवक भाग गए। दूसरे दिन उन पर मुकदमा चलाया गया। उसमें से बाबा राव सावरकर बच निकले परंतु उनको आज़ाद रखना सरकार को पसंद नहीं था। देश भक्ति पर कविताएं लिखने के कारण उन्हें 'काले पानी' की सज़ा दी गई।
लाला हरदयाल लंदन में पढ़ाई के लिए गए थे। वह योग्य छात्र थे, उनको 250 रु. मासिक की छात्रवृत्ति मिलती थी। सुवर्ण महोत्सव के कार्यक्रमों में 1857 के शहीदों की जय व 'वन्दे मातरम्' अंकित किया हुआ बिल्ला बड़े गर्व से छाती पर लटका कर गए। इस कारण छात्रवृत्ति बंद की गई। अपना अनमोल जीवन दांव पर लगाने वालों के लिए चंद चांदी के टुकड़ों का क्या महत्व !
गांधी जी के शब्दों में जब तक हमारा राष्ट्र है तब तक यह गीत अमर रहेगा। निःसंदेह 'वन्दे मातरम्' अमर गीत है जिसके माध्यम से श्री बंकिमचन्द्र ने मातृभूमि की सर्वश्रेष्ठता को सिद्ध किया। यह प्रेरणा का स्रोत है। ज़रूरत है इस गीत के संदेश को घर-घर पहुंचाया जाए।
साभार:- प्रो. कृष्णलाल भल्ला एवं मार्च 1996 कोशुर समाचार