देवदास के तीन दृश्य..- एक अंश
Naadem नादिम जी
फाल्गुन शुक्ल दशमी (28.2.1996) नादिम जी की 80वीं जयंती पर
प्रस्तुति - ओम्कार काचरू
फरेरे उड़ रहे हैं अब्र के अंबर की वादी में,
सन्नाटा चांदनी का लीन हैं तारे समाधी में।
कोहर उल्झा हुआ है झाड़ियों में खस के ढेरों में,
अंधेरा अंगड़ाइयां लेता है छत की मुंडेरों में।
मकां के खंडहरों पर चांदनी सुनसान सोती है,
जैसे लाश पर मरते समय मुस्कान होतीं है।
अंधेरी सीढ़ियों पर चांद की बहकी निगाहें हैं,
हवा की सरसराहट में किसी नन्हे की आहें हैं!
अस्वीकरण:
उपरोक्त लेख में व्यक्त विचार नादिम जी के व्यक्तिगत विचार हैं और कश्मीरीभट्टाण्इन उपरोक्त लेख में व्यक्त विचारों के लिए जिम्मेदार नहीं है।
साभार: नादिम जी एवम मार्च 1996 कोशुर समाचार कोशुर समाचार
प्रस्तुति - ओम्कार काचरू