उठ जाग मुसाफिर भोर भई।
अब रैन कहां जो सोवत है।। ध्रुव ।।
जो सोवत है सो खोवत है।
जो जागत है वो पावत है।। 1।।
टुक नींद से अँखिया खोल जरा।
ओ गाफिल, प्रभु से ध्यान लगा।।
यह प्रीत करन की रीत नहीं।
प्रभु जागत है तू सोवत है।। 2।।
अनजान! भुगत करणी अपनी।
ओ पापी! पाप में चैन कहँ ?
जब आप की गठड़ी शीश धरी।
फिर शीश पकड़ क्यो रोवत है।। 3।।
जो काल करे सो आज ही कर।
जो आज करे सो अब कर
जब चिड़ियन खेती चुिग डारी
फिर पछताये क्या होवत है।। 4।।