तेरे दर को छोड़कर किस दर जाऊँ मैं।
सुनता मेरी कौन है किसे सुनाऊँ मैं।।
जब से याद भुलाई तेरी लाखें कष्ट उठाये हैं।
न जाने इस जीवन अन्दर कितने पाप कमाये हैं।
प्रभु हूँ शरमिन्दा आपसे क्या बतलाऊँ मैं।।
मेरे पाप कर्म ही तुमसे प्रीति न करने देते हैं।
कभी जो चाहुँ मिलूं आपसे रोक मुझे ये लेते हैं।
फिर कैसे भगवान आपके दर्शन पाऊँ मैं।।
तू है नाम वरों का दाता तुझसे सब वर पाते हैं।
ऋषि मुनि और योगी सारे तेरे ही गुण गाते हैं।
प्रभू छींटा दे दो ज्ञान का होश में आऊँ मैं।।
जौ बीती सो बीती लेकिन बाकी उमर संभालूं मैं।
चरणों में प्रभु बैठ आपके गीत प्रेम से गालूं मैं।
जीवन प्यारे ’भक्त’ का सफल बनाऊँ मैं।।