Ramavtar रामावतार

Ramavtar रामावतार



जय जय सुरनायक जन, सुखदायक प्रनतपाल भगवंता।

गोद्विज हितकारी जय असुरारी सिन्धु सुता प्रिय कंता।।

पालन सुरधरनी अद्भुत करनी मरम ना जानइ कोई।

जो सहज कृपाला दीन दयाला करउ अनुग्रह सोई।।

जय जय अविनासी सब घट वासी व्यापक परमानन्दा।

अविगत गोतीतं चरित पुनीतं माया रहित मुकुन्दा।।

जेहि लागि विरागी अति अनुरागी विगत मोह मुनिवृन्दा।

निसिवासर ध्यावहीं गुनगन गावाहिं जयति सच्चिदानन्दा।।

जेहि सृष्टि उपाई त्रिविध बनाई संग सहय न दूजा।

सो करउ अघारी चिंत्य हमारी  जानिय भगति न पूजा।।

जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन गंजन विपति बरुथा।

मन वच क्रम बानी छांडि सयानी सरन सकल सुरजूथा।।

सारद श्रुति रोशा रिषय असेषा जा कहुं कोउ नहीं जाना।

जेहि दीन पियारे वेद पुकारे द्रवऊँ सो श्री भगवाना।।

भव वारिधि मंदर सब विधि सुन्दर गुन मन्दिर सुख पुन्जा।

मुनि सिद्ध सकल सुर परम भयातुर नमत नाथ पद कन्जा।।

दो. जानि सभय सुर भूमि सुनि, वचन समत सनेह।

गगन गिरा गम्भीर भई, हरन सोक सन्देह।।