​​​​​​​बेलचे ले आओ खोदो जमीन की तहें, हम कहां दफन है, कुछ पता तो चले

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बेलचे ले आओ खोदो जमीन की तहें, हम कहां दफन है, कुछ पता तो चले

बृजनाथ वातल बेताब

उर्दू के विख्यात कवि फैज अहमद फैज की यह पक्तियां मुझे तब अचानक याद आई जब जम्मू-कश्मीर विधान सभा के निर्वाचन के परिणाम घोषित हो रहे थे और दर्जनों कश्मीरी पंडित प्रत्याशियों में से कोई एक भी जीत नहीं रहा था। जीत तो दूर की बात, जिस तरह से पूरे समुदाय का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाले इन प्रत्याशियों को 10-10 या 15-15 बोट आ रहे थे उससे मेरा ही नहीं. मुझ जैसे कई लोगों का सिर शर्म से झुक गया, क्योंकि हारने वाले वही लोग थे जो स्वयं को पूरे समुदाय का प्रतिनिधि बता रहे थे और आज भी डींगे मारकर बड़ी-बड़ी संस्थानों में बैठे हैं। मेरा तो मन करता है कि इनके लिए कह दू 'शर्म तुमको मगर नहीं आती-मेरे मालिक अब तो छोड़ दो राजनीति। किस बलबूते पर स्वयं को और समाज को भी धोखे में रख रहे हो। बुनियाद तो है ही नहीं।

यह इस तस्वीर का एक रुख था। दूसरा पक्ष यह है कि कश्मीरी समिति दिल्ली ने अपने समुदाय के सामने अपना मत रखते हुए यह बात कही थी कि हमें इस चुनाव में भाग नहीं लेना चाहिए क्योंकि उसे न सिर्फ ये कि हमारी समस्याओं का चुनाव लडने से समाधान नहीं होगा बल्कि हमारा जो कश्मीर वापस जाने के बारे में समुदाय हित पर आधारित मत है. दो भी कमजोर पड़ जाएगा। जिस तरह से इस चुनाव में कुल मिलाकर हमारे समुदाय के एक हजार के करीब ही वोट पड़े उससे हमें यह संतुष्टि है और हम गर्व के साथ कह भी सकते हैं कि समुदाय ने कश्मीरी समिति दिल्ली के मत को स्वीकारा है और जम्मू-कश्मीर विधान सभा के चुनाव में वोट नहीं डाला।

हमारे लिए यह वाकई मुंह मीठा करने वाली बात है और हम इस सहयोग के लिए समुदाय के आभारी हैं।

चुनाव जिस तरह कराए गए उससे कई बातें सामने आई हैं। एक तो यह कि कश्मीर के बहुसंख्यक समुदाय ने अलगाववादियों की चुनाव का बहिष्कार करने की अपील को ठुकरा दिया। यह दो चीजों को दर्शाता है-एक यह कि कश्मीर की आम जनता अलगाववादियों की परवाह अब नहीं करती क्योंकि वो पिछले बीस वर्षों के आतंक और खूनखराबे से तंग आ चुके हैं। यह हमारे लिए और देश के लिए अच्छा संकेत है। दूसरी बात जो इस चुनाव से स्पष्ट हुई है वह यह है कि जम्मू-कश्मीर की सारी जनता लोकतंत्र में पूरा विश्वास रखती है। देश की लोकतांत्रिक प्रणाली में उसका कितना दृढ विश्वास है वह इस बात से पता चलता है कि कुल मिलाकर इस चुनाव में 61 फीसदी मतदान हुआ।

युवा नेता उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में साझी सरकार बन चुकी है और अब सबकी नजरें इस सरकार की नीतियों की ओर है।

हम इस बात का स्वागत करते हैं कि नेशनल काफ्रेंस ने यह घोषणा की है कि वो कश्मीरी पंडित समुदाय के एक प्रतिनिधि को मंत्रिमंडल में शामिल करेंगे ताकि सरकार में कश्मीरी पंडित की आवाज रहे। इस बारे में एक भूतपूर्व अधिकारी का नाम लिया जा रहा है। खैर जो भी कश्मीरी पंडित जम्मू-कश्मीर के मंत्रिमंडल में शामिल होगा, हमें उसका भी स्वागत करना होगा और उसके साथ पूरा सहयोग और तालमेल करना होगा। हमारे इस प्रतिनिधि को भी यह बात पूरी निष्ठा के साथ मान लेनी चाहिए कि उसे कश्मीरी पंडित समुदाय के प्रतिनिधि के रूप में ही मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है। इस धारणा से किए जाने वाले सहयोग से हमारे लिए आगे बढ़ने का रास्ता खुल जाएगा। -ब.

अस्वीकरण :

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साभारः बृजनाथ वातल बेताब एवम् कौशुर समाचार, जनवरी, 2009