Venkatesh Bhagwan ki Aarti आरती श्री वेंकटेश भगवान की

आरति वेंकटपति  की कीजै,

तन मन धन सब तिनको दीजै।

वेंकटेश कलियुग के देवा,

पावत सब फल जो कर सेवा।

सकल ताप दर्शन से जायें ,

जो जन एक झलक ले पायें।

सेवा को फल तुरतहिं लीजै॥

आरती

 

महाविष्णु ने कलि इक बारा, अर्चावपु धरती पर धारा।

सप्ताचल पर कीन्ह निवासा, सुर.नर मुनि भये उनके दासा।

जीवन दुःख दरस सों छीजै॥

आरती

 

सतयुग वरदराज कहलाते, कांची में प्रभु पूजे जाते।

त्रेता में रंगनाथ गुसाईं श्री रंग में सोवत साईं।

तिनको दर्शन हूँ कर लीजै॥

आरती

 

द्वापर में हरि मूरति गाई, जगन्नाथ के नाम पुजाई।

सो प्रभु चार जुगन के नाते, कलि में बालाजी बन जाते। वेंकट वेंकट नाम कहीजै॥

आरती

 

वे पद पाप मूल बतलाया, सो काटत वेंकट कहलाया। भगत बटोही स्वामी ऐसा, जो मन भाव लेय मन जैसा।

 

तिनकी इच्छा पूरन कीजै॥

आरति

 

वेंकटेश आरति जो गावै, करतल गत चारिहु फल लावै।

सबके नाथ करो स्वीकार, पत्र.पुष्प.फल जो कछु बारा,

 

हम पर सदा कृपा कर दीजै॥

दोहाः बरदराज सतयुग भये त्रेता श्री रंगनाथ।

जगन्नाथ द्वापर भये कलि हरि वेंकटनाथ॥