Goldsmith सुनार
एक सुनार था । बीमार पड़ा। लंबे समय तक दुकान पर न जा सका। उसके मन में यही विचार घूमते रहते थे पता नहीं क्या भाव है, खरीदा हुआ सोना फायदे में बिक पाया या नहीं? मरणासन्न स्थिति में बोल नहीं पाता था, पर विचार वही चल रहे थे। परिजन उपचार में लगे थे। डॉक्टर ने बुखार नापा, १०५ था। लड़के ने परेशानी के स्वर में कहा- “चाचा? बुखार १०५ हो गया।” रोगी ने सोने का भाव समझा और जोर से बोला- "बेच दे, बेच दे, अपनी खरीद ८० की है।" और उसके प्राण निकल गए। परिजनों के अंत समय में भगवान का नाम कहलवाने, गोदान कराने के प्रयास धरे-के-धरे रह गए।
साभारः- अगस्त, 2004, अखण्ड ज्योति, पृष्ठ संख्या -35
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