Bhajan Dispassionate भजन निस्पृह

Bhajan Dispassionate भजन निस्पृह

दो भक्त थे। एक बहुत देर तक भजन करता । दूसरा कुछ ही क्षणों में काम निपटा देता। दोनों ही मंदिर में रोज दर्शन करने जाते।

कम भजन करने वाला संपन्न बनता चला गया और बहुत भजन करने वाला दरिद्र ही बना रहा। अधिक भक्ति वाले ने देवता से शिकायत की कि ऐसा क्यों ? अधिक भक्ति का कम प्रतिफल कैसे ? देवता मुस्कराए और बोले-“एक तुम हो, जो मनोकामना से लदे रहते हो और पुरुषार्थ के नाम पर आलस्य, प्रमाद बरतते हो। दूसरा वह है, जो पुरुषार्थ करता है और उतने से ही व्यवस्थापूर्वक काम चलाते हुए संतोष करता है।” देवता ने फिर समझाया- “ भजन निस्पृह और पराक्रमयुक्त होना चाहिए। तभी उसकी सार्थकता है।"

साभारः- अगस्त, 2004, अखण्ड ज्योति, पृष्ठ संख्या -15