Putreshti Yagya पुत्रेष्टि यज्ञ

Putreshti Yagya पुत्रेष्टि यज्ञ

श्रृंगी ऋषि ने स्वयं को सच्चे अर्थों में आत्मसंयमी तपस्वी बनाया। विद्वत्ता और योग प्रवीणता तो सीमित थी। परंतु संयम-तप से उनकी वाणी इस योग्य हो गई थी कि शाप या वरदान दे सकें। पिता ने उन्हें आश्रम में उपजा अन्न ही खाने दिया था और स्त्रियाँ संसार में होती भी हैं या नहीं, यह जानकारी तक उन्हें लगने नहीं दी थी।

दशरथ के पुत्रेष्टि यज्ञ में वाक्सिद्धि वाले आचार्य की आवश्यकता पड़ी। यह सिद्धि इंद्रियसंयम के बिना किसी को उपलब्ध होती नहीं। श्रृंगी ऋषि को लेने दशरथ और वसिष्ठ आश्रम में पहुँचे। दशरथ को वसिष्ठ के इस कथन पर विश्वास न हो रहा था कि आहार और वासना के संबंध में कोई इतना संयमी हो सकता है।

परीक्षा के लिए अप्सराएँ बुलाई गई, वे मधुर मिष्टान्न लेकर आश्रम में पहुँचीं। शृंगी ने उन महिलाओं को भी किसी आश्रम के विद्यार्थी-ब्रह्मचारी समझा और मिष्टान्नों को किन्हीं वृक्षों के फल होने का अनुमान लगाने लगे। इस अनभिज्ञता पर दशरथ को विश्वास हो गया कि वे सच्चे अर्थों में इंद्रियसंयमी तपस्वी हैं।

पुत्रेष्टि यज्ञ के लिए अनुरोध करके श्रृंगी ऋषि को अयोध्या लाया गया। उनके द्वारा उच्चरित मंत्र सफल हुए। तीनों रानियों के चार पुत्र उसी यज्ञचरु से जन्मे। इससे पूर्व साधारण ब्राह्मणों द्वारा किए गए कितनी ही बार के यज्ञ, मंत्र, आशीर्वाद निष्फल हो चुके थे; क्योंकि वे संयमी न थे ।

साभारः- अगस्त, 2004, अखण्ड ज्योति, पृष्ठ संख्या -14