Egoistic  अहंकारग्रस्त

Egoistic  अहंकारग्रस्त

गुरु और शिष्य एक जलाशय के किनारे बैठे सुस्ता रहे थे। इतने में हाथी पानी पीने उधर आया और मेढक के बिल के पास से गुजरा।

मेढक को बड़ा क्रोध आया। उसने लात दिखाकर अपनी भाषा में हाथी से कहा-"क्यों रे, तुच्छ जीव, तेरी इतनी जुर्रत कि मेरे घर को लांघकर निकले। देखता नहीं, इस लात के मारे तेरा कचूमर निकाल दूंगा।" हाथी को मेढक दीखा भी नहीं। पानी पीकर वह अपने रास्ते चला गया। उसने गुरुदेव से पूछा "प्रभो, यह नन्हा-सा मेढक इतनी बढ़-चढ़कर बातें क्यों करता है, यह इतना अहंकारग्रस्त क्यों है ? "

गुरुदेव ने कहा- "मेढक ने कहीं से एक रुपया पा लिया है। उसे बिल में रखे बैठा है। धन के नशे में वह कहनी-अनकहनी कहता है।" शिष्य को संबोधन करते हुए उन्होंने कहा- "वत्स क्षुद्र लोग थोड़े ही वैभव से इतराने लगते हैं। मेढक को अहंकारी बना देने के लिए एक रुपया भी क्या कम है!'

साभारः- अगस्त, 2004, अखण्ड ज्योति, पृष्ठ संख्या -10