Bhishmas PitaraBhakti भीष्म की पितृभक्ति

Bhishma's PitaraBhakti भीष्म की पितृभक्ति

 

राजा शांतनु एक रूपवती धीवर कन्या सत्यवती से विवाह करना चाहते थे। उन्होंने धीवर कि समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा तो उसने उत्तर दिया कि यदि मेरी कन्या के गर्भ से उत्पन्न बालक को ही आप राज्य आदि देने का वचन दें, तो मैं यह प्रस्ताव स्वीकार कर सकता हूँ। शांतनु असमंजस में पड़े, क्योंकि उनकी पहली रानी गंगा का पुत्र भीष्म मौजूद था और वही राज्याधिकारी भी था। शांतनु लौट आए, पर वे मन-ही-मन दुःखी रहने लगे।

भीष्म को जब यह पता चला तो उन्होंने पिता को संतुष्ट करना अपना कर्त्तव्य समझा और धीवर के सामने जाकर प्रतिज्ञा की कि मैं अपना राज्याधिकार छोड़ता हूँ। सत्यवती का पुत्र ही राज्याधिकारी होगा। इतना ही नहीं, मैं आजीवन अविवाहित भी रहूँगा, ताकि मेरी संतान कहीं उस गद्दी पर अपना अधिकार न जमाने लगे। इस प्रतिज्ञा से धीवर संतुष्ट हुआ और उसने अपनी कन्या का विवाह शांतनु के साथ कर दिया।

पिता के दोष को न देखकर उनकी प्रसन्नता के लिए स्वयं बड़ा त्याग करना भीष्म की आदर्श पितृभक्ति है।

साभारः- अगस्त, 2004, अखण्ड ज्योति, पृष्ठ संख्या -07