Ocean of Knowledge ज्ञानसागर

Ocean of Knowledge ज्ञानसागर

एक विद्वान व्यक्ति को यह चिंता रहती थी कि उनके शरीर छोड़ने के उपरांत उनके गुरुकुल व आश्रम को कौन सुचारु रूप से चला पाएगा? अपने शिष्यों में से योग्य अधिकारी का चयन करने के उद्देश्य से सबको लेकर वे उफनती नदी के किनारे पहुँचे। वहाँ वे अपने शिष्यों से बोले – “तुममें से कौन इस नदी के जलस्तर को माप कर आ सकता है ?'' यह सुनकर सभी एकदूसरे का मुँह ताकने लगे। यह देखकर विद्वान व्यक्ति बोले–“यद्यपि मैं बूढ़ा हो चुका हूँ, परंतु मैं ही इस हेतु प्रयत्न करता हूँ। अगर मुझे कुछ हो गया तो तुम लोग मेरी संपत्ति परस्पर बाँट लेना।" यह सुनकर भी शिष्यों में से कोई सहायता को आगे न बढ़ा।

 

वहीं पास के एक खेत में एक किसान उनकी सारी बातें सुन रहा था। वह पास आकर बोला – “महाराज! आप तो ज्ञानी हैं। फिर आप नदी के जलस्तर को नापने के लिए अपनी जान खतरे में क्यों डालना चाहते हैं? आपको तो अभी संसार में ज्ञान की ज्योति फैलानी है। आप मुझे आज्ञा दें, मैं यह कार्य करके आता हूँ।" यह सुनकर विद्वान व्यक्ति बोले 'वत्स! मुझे तुम्हारी ही प्रतीक्षा थी। आज से तुम मेरे शिष्य हुए। अब तुम्हीं मेरे कार्यों को आगे बढ़ाना।" किसान बोला – “महात्मन्! मैं तो अनपढ़ हूँ, मैं भला ज्ञान की क्या बातें कर सकता हूँ?" उत्तर में विद्वान व्यक्ति बोले – “पुत्र! जब " तुम उफनती नदी का स्तर मापने का प्रयास कर सकते हो तो ज्ञानसागर को मापने में क्या दिक्कत है। तुम्हारा साहस ही तुम्हारी योग्यता का प्रमाण है।

साभारः सितंबर, 2016, अखण्ड ज्योति, पृष्ठ संख्या - 49