The Eye of Knowledge ज्ञानचक्षु

The Eye of Knowledge ज्ञानचक्षु

एक अंधा भीख माँगा करता था। जो पाई-पैसे मिल जाते, उन्हीं से अपनी गुजर करता। एक दिन एक धनी उधर से निकला। उसे अंधे के फटेहाल पर बहुत दया आई और उसने पाँच रुपये का नोट उसके हाथ पर रखकर आगे की राह ली।

अंधे ने कागज को टटोलकर देखा और समझा कि किसी ने ठिठोली की है और उस नोट को खिन्न मन से जमीन पर फेंक दिया। एक सज्जन ने नोट को उठाकर अंधे को दिया और बताया-“यह तो पाँच रुपये का नोट है !" तब वह प्रसन्न हुआ और उससे अपनी आवश्यकताएँ पूरी कीं। ज्ञानचक्षुओं के अभाव में हम भी परमात्मा के अपार दान को देख और समझ नहीं पाते और सदा यही कहते रहते हैं कि हमारे पास कुछ नहीं; हमें कुछ नहीं मिला है; हम साधनहीन हैं; पर यदि हमें जो नहीं मिला है, उसकी शिकायत करना छोड़कर, जो मिला है, उसी की महत्ता को समझें तो मालूम पड़ेगा कि जो कुछ मिला हुआ है, वह कम नहीं, अद्भुत है।

साभारः- जनवरी, 2006,अखण्ड ज्योति, पृष्ठ संख्या - 28