Duty कर्त्तव्य

Duty कर्त्तव्य

रोम के पोंपाई नगर के निकट एक बड़ा ज्वालामुखी फटा। यह दुर्घटना इतने जोर की हुई कि वह विशाल नगर खंडहर बन गया और ज्वालामुखी की धूल में दबकर सदैव के लिए विलीन हो गया।

पौने दो हजार वर्ष के लंबे अरसे के बाद यह बात केवल इतिहास के पन्नों पर धुंधली-सी अंकित रह गई थी। किसे मालूम था कि यह नगर अभी बिलकुल ही नष्ट नहीं हुआ। भू-तत्त्ववेत्ताओं ने उन टीलों को खोदा तो उनमें से प्राचीन गौरव की साक्षी देता हुआ भग्नावशेष एक सुंदर नगर निकल आया।

'उस समय भूकंप से बचे निवासियों ने अपनी विपत्ति के कुछ संस्मरण लिखे थे, जो अब तक सुरक्षित हैं। उनमें लिखा है- जब भूकंप के धड़ाके हुए तो लोग भागने लगे। जिसे जहाँ बन पड़ा, भागा। कुछ बच गए, कुछ मर गए। भागने वालों में से कुछ ने राजद्वार के प्रहरी से कहा- "चलो, तुम भी भाग चलो।" उसने उत्तर दिया – "मेरा कर्त्तव्य मुझे अपने फर्ज से हटने की आज्ञा नहीं देता।" वह अपना चपरास पहने हुए जहाँ-की तहाँ खड़ा रहा और उस महान नगर के साथ समाधिस्थ हो गया।

जब राजद्वार तक खुदाई पहुँची तो देखा कि एक प्रहरी का अस्थिपंजर ज्यों-का-त्यों खड़ा है। चपरास का बिल्ला और तलवार उसी पंजर से सटी हुई है। वह चाहता तो दूसरे लोगों की तरह भाग सकता था, पर कर्त्तव्य ने उसे ऐसा करने से रोक दिया।

रोम में उस कंकाल का शाही स्वागत किया गया और सारे देश ने उसे अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। शताब्दियाँ बीत गईं, पर वह रोम का कर्मनिष्ठ प्रहरी सीधा खड़ा हुआ है। दर्शकों को वह कंकाल उपदेश देता है— " भागिए मत, अपने कर्त्तव्य स्थल पर खड़े रहिए; क्योंकि मनुष्य का गौरव इसी में सन्निहित है।"

साभारः- जनवरी, 2006, अखण्ड ज्योति, पृष्ठ संख्या - 12