Upgupt उपगुप्त

Upgupt उपगुप्त

उपगुप्त भगवान बुद्ध के निकटवर्ती शिष्य थे। वे बड़े आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी थे और जो उनसे एक बार मिलता वो उनको आसानी से भूल नहीं पाता था। एक बार एक सुंदरी उनसे मिलने आई और उनके प्रति अत्यधिक अनुरक्त हो गई। उसने उपगुप्त से प्रार्थना की कि वे कुछ समय उसके साथ बिताकर उसे कृतार्थ करें। उपगुप्त ने उत्तर दिया कि जब उचित समय आएगा तो वे जरूर उसके साथ समय बिताएँगे। समय बीतता गया। जैसे-जैसे उस सुंदरी की आयु बढ़ी, वैसे-वैसे उसे अनेक व्याधियों ने आ घेरा। जो लोग कल उसकी सुंदरता पर आकर्षित होते थे, वे आज उसको देखकर मुँह फेरने लगे। वो अकेली बैठकर अपने दुर्दिनों को कोसा करती। ऐसे में एक दिन उपगुप्त उसके घर पहुँचे और उससे बोले–‘‘देवी! मैं अपने दिए वचन के अनुसार तुम्हारी सेवा में उपस्थित हूँ।" वह आश्चर्यचकित होकर बोली- “प्रभु ! जब मैं प्रेम योग्य थी तब तो आपने मुझे विस्मृत कर दिया और आज इस पीड़ित और बेसहारा को देखने चले आए।" उपगुप्त ने कहा- "हे देवी! शारीरिक आकर्षण से उपजी आसक्ति वासना कहलाती है। प्रेम तो भावनात्मक संबंधों पर आधारित होता है। मेरी दृष्टि में यही समय तुम्हारे साथ बिताने के लिए उपयुक्त है।" वह महिला यह सुनकर नतमस्तक हो गई।

साभारः- सितंबर, 2012 % अखण्ड ज्योति, पृष्ठ संख्या - 37